दोस्तों एक तरफ मिस्र की क्रान्ति दूसरी तरफ हमारे देश का भ्रस्ताचार और कुर्सी से जुड़े नेताओं का उसमें शामिल होना जनता की गाडी कमाई को हवा में उडाना और देश के रुपयों को गुमनामी लोगों के नाम से विदेश में जमा करना आज देश में सरकार के निकम्मेपन और लूट की पराकाष्ठा हे विश्व में इतिहास में पहले ना भविष्य में किसी भी देश में आज की हमारी सरकार जेसो गूंगी लंगड़ी बहरी अंधी भ्रष्ट सरकार कभी नहीं आ सकती फिर भी हमारा देश इन सब को ना जाने क्यूँ बर्दाश्त कर रहा हे शायद अंग्रेजों की गुलामी ने हमारी इन चीजों की आदत डाल दी हे और हमें कमजोर लाचार बना दिया हे ऐसे में कोटा से प्रकाशित देनिक अंगद के सम्पादक की शब्द यात्रा के दोरान लिखी एक कविता याद आती हे जो पेश हे ......................
पिंजरे के पंछी से बोला
आ रे सारा गगन घुमा दूँ
गमले के किसलय से बोला
आ रे उपवन में उपजा दूँ
दोनों ही इनकार हो गये
दोनों ने इनकार कर दिया
गति सम्पन्न मगर बंदी पंछी बोला
मुझको अपने पंखों पर विश्वास नहीं हे
वेसे उढने वालों के प्रति मान बहुत हे
आता मुझको बंदी जीवन रास नहीं हे
फिर भी पिंजरे का जीवन तज
उढने के हालात नहीं हे
किसलय बोला
मुझको बाग़ बगीचों का जीवन भाता हे
बीत जायेगी ज्यों त्यों करके
बची ख़ुची कुछ सांस
में स्तम्भित हो सोच रहा हूँ
इन्कलाब के आने में देरी क्या हे
इन्कलाब के आने में देरी क्यूँ हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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