आपका-अख्तर खान

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18 फ़रवरी 2011

तुम मेरे लियें .....

हाँ तुम मेरे लियें
झिलमिलाते
आसमां के तारे हों
उन्हें भी बस
टक टक निहारा जा सकता हे
तुम्हें भी बस यूँ ही
निहारा और देखा
जा सकता हे
जेसे तारे मुझे
कभी मिल नहीं सकते
वेसे ही
तुमने भी
मुझ से
नहीं मिलने की
ठान ली हे
तो बस
तुममें और आसमान के चमकते झिलमिलाते
तारों में क्या फर्क हे
तारे भी
रात में झिलमिलाते हें
तुम्हारी याद भी
बस रात को ही आती हे
तो फिर सही कहा ना मेने
तुम मेरे लियें
तारे सिर्फ तारे हो .................. । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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