अजीब
बहुत अजीब
हे ना ,
एक सो का नोट
लेकिन बहुत
ज्यादा लगता हे
जब
किसी भूखे
या गरीब को देना हो ,
लेकिन
होटल में तो
यही सो का नोट
बहुत छोटा सा लगता हे
खुदा को
तीन मिनट
या करना मुश्किल हे
लेकिन तीन घंटे
फिल्म देखना
अच्छा बहुत अच्छा लगता हे
पुरे दिन महनत करने के बाद
जिम जाने से
जरा अभी नहीं थकते
लेकिन
थोड़ा मां बाप के पास
बेठने और उनके
हाथ पाँव दाबने में थक जाते हो
ऐसा आज होता हे
क्योंकि
इस कलियुग में
असा ही अजब होता हे
वेलेंटाइन के दिन
दो सो का पेक
प्रेमिका को
दे आयेंगे
लेकिन पेरेंट्स डे और मदर डे
पर मां बाप के लियें
एक गुलाब भी
ना लाया जाएगा ,
दोस्तों यह कलियुग हे
इसलियें इस सच को
अपने ब्लॉग पर
सीधा लिंक करना
आपके लियें
बहुत बहुत
मुश्किल हे
जबकि
फ़िज़ूल की पोस्ट तो
लिंक करना
दुबारा प्रकाशित करना
हम अपना फर्ज़ समझते हें
क्यूँ दोस्तों सही कहा ना
कितनी अजीब बात
कितनी अजीब जिंदगी हे ये ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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