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20 जनवरी 2011

कोटा में चम्बल फेस्टिवल लेकिन चम्बल सूखी हे

राजस्थान में कोटा को ही नहीं सारे हाडोती को हरा भरा खुशहाल कर देने वाली चम्बल नदी के शुद्धिकरण के नाम पर अरबों रूपये सरकार के अधिकारी और मंत्री चट कर गये हें हालात यह हें के विकट परिस्थितियों के चलते ५ और ६ फरवरी को होने वाले चम्बल फेस्टिवल के वक्त चम्बल में पानी नहीं रहेगा।
कोटा में इस अवसर पर चम्बल में पानी की वोटिंग वगेरा की प्रतियोगिताएं आयजित होती हें लेकिन इन रोमांचक कार्यक्रमों में अब नदी में पानी कम होने से महत्वपूर्ण खेल कूद नहीं होंगे जबकि आकाश की पेराशूट और बेलून उधन प्रतियोगिताएं यथावत रहेंगी अब जब देश में चम्बल फेस्टिवल पर चम्बल सूखी हो तो फिर यह एक तमाशा नहीं तो और क्या हे ।
चम्बल का अपना इतिहास हे वेसे तो चम्बल इन्दोर मध्य प्रदेश के पास माऊ छावनी से निकलती हुई कोटा तक पहुंची हे लेकिन इसका अपना लोक कथा इतिहास हें कहते हें के इस के तट पर श्रवण कुमार जब अपने ममता पिता को कंधे पर लेकर आया तो यहाँ आते ही उसने अपने माता पिता से सेवा का कर मांग लिया और सेवा करने से इंकार कर दिया बाद में जब यह श्रवण कुमार आगे गया तो फिर से वोह अपने माता पिता की सेवा करने लगा इसी तरह से सीता माता ने भी यहा गुजर बसर किया था य्हना कन्सुआ मन्दिर हे जबकि यहाँ कथुन में विभिष्ण का भी मन्दिर बनाया गया हे , चम्बल के बारे में लोक कथा हे के जब उर्वशी और मेनका ने ऋषि महाराज का उन्हें लुभा कर उनका मुनित्व भंग किया तो मेनका को ऋषि महाराज ने श्राप दिया के अगले जन्म में तू काली नदी यानी अंदर जमीन में बहने वाली नदी बन कर गुमनामी में बहे इससे मेनका बहुत घबराई और उसने ऋषि महाराज से बहुत बहुत माफ़ी मांगी और श्राप मुक्त करने के लियें कहा लेकिन महाराज नहीं माने अंत में महाराज ने अपने श्राप को संशोधित किया के मेनका बनेगी तो नदी लेकिन ऐसी नीद बनेगी के जहां से निकलेगी वहन हरियाली खुशहाली कर देगी और इसी लियें चम्बल जहां जहां भी गुजरी हे वोह खुहाली और हरियाली का पैगाम देते हुए निकली हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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