दोस्तों कहावत हे के दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता हे और कुदरत इस कहावत को हर कदम पर सच करती आई हे इसी कहावत के तहत आज हम खुद भी मामू बन गये और हें एहसास हो गया के सच में खुदा की कुदरत हे और वोह जिसको जहां जो खिलाना चाहता हे उसे वही मिलता हे ।
हुआ क्या जनाब के आज रविवार अवकाश का दिन था हमारे एक दूर के रिश्तेदार हमसे कई दिनों से सपरिवार दावत करने की जिद पर अड़े हुए थे एक उनके ही पडोस का परिवार और हे जो भी परिचित हे और वोह भी काफी दिनों से द्दाव्त के पीछे पढ़ा हुआ था , आज सुबह जेसे ही फोन की घंटी बजी और अवकाश का होना कहकर हमारे एक रिश्तेदार ने दावत की कहा तो मेने फोन हमारी में साहब को पकड़ा दिया में साहब का हुआ के आज तो शाम को रिश्तेदार जी के यहाँ ही दावत खायेंगे खेर हमने प्लान बनाया गाड़ी उठायी बच्चों को साथ लिया पहले देनिक भास्कर के मेघा ट्रेड फेयर में टाइम पास किया फिर सी ऐ दी सर्किल पर लगे व्यापरिक मेला डेकोर मेले की ख़ाक छानी शाम हुई और हम एक दो जगह मिलते मिलाते रिश्तेदार जी के यहाँ खाने जा पहुंचे , रिश्तेदार जी के यहाँ मकान का काम चल रहा था हम थोड़ी देर बेठे फिर पडोस में रहने वाले दुसरे रिश्तेदार जी जो खुद भी कई बार दावत की कह चुके थे उनसे मिलने का मन हुआ और हमारी में साहब ने उनसे मिलें की इच्छा ज़ाहिर की तो हम भी उनके साथ मिलने चल दिए ।
कुदरत का करिश्मा कहिये के यह जनाब भी किसी की दावत कर बेठे थे और हम जब वहां गये तो वोह लोग भी मोजूद थे बस उन्होंने इधर उधर की बात के बाद कहा के आजकल तो पडोस में मकान का काम चल रहा हे तो धूल मिटटी की वजह से उनके यहाँ का खाना भी यहीं आ जाता हे और मिल बेठ कर साथ कहा लेते हें फिर उन्होंने दस्त्र खाना बिछाया और खाना परोस दिया हमसे खाने को कहा हमने देखा के जिन रिश्तेदार ने हमें दावत दी थी वोह आयीं और एक बर्तन में कुछ इन जनाब के यहाँ दे गयीं बस हम समझे के खाना यहीं खाना हे और हम भी खाने बेठ गये सपरिवार जब खाना खा रहे थे तो हमारी में साहब ने कहा के नीचे तो उन्होंने पुलाव भी बनाया हे कहा था वोह तो अभी तक आया नहीं पड़ोसी जी उठे और नीचे जाकर पुलाव भी ले आये थोड़ी देर में जब हम खाना खा चुके तब जिन रिश्तेदार जी ने हमें सपरिवार दावत दी थी वोह पडोस में उपर आये और हमें खाने के दस्तरखान पर लपकते देख चुपचाप बेठ गये थोड़ी देर में जब कोफ़ी आई तो उन्होंने कहा के में तो आपके लियें नीचे गर्म गर्म रोटी बनवा रहा था और दो तीन तरह के व्यंजन के नाम उन्होंने गिनाये के यह व्यंजन जो आपको पसंद हें वोह मेने बनवाये हें मेने जिन जनाब के यहाँ खाना कहा लिया था उनकी तरफ देखा तो राज़ खुला के यह जनाब तो सोचते थे के आज हम नके यहाँ खाना खाने पुराने वायदे के मुताबिक आ गये हे पर इसीलियें उनके घर में जो भी था जो उन्होंने दूसरों की दावत के लियें बनाया था हमें परोस दिया अब हमारे तो काटो तो खून नहीं लेकिन बाद में बस यही कहावत ने हमें सहारा दिया के दाने दाने वाले पर खाने वाले का नाम खुदा ही लिख देता हे फिर जब नीचे जहां दावत थी उन रिश्तेदार के यहाँ पहुंचे तो उनकी में साहब का पारा सातवें आसमां पर था कहती थी मेने यह और वोह सब चीजें मन पसंद बनाई हें दिन भर परेशान रही और खाना आपने दूसरी जगह खाकर ठीक नहीं किया यकीन मानिए भाई उनको भी फिर यही कहावत के दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता हे इसलियें हमारा रिज़क खुदा ने जहां उतरा था वहां हमने कहा लिए तो फिर रिश्तेदार जी की में साहब का परा तो थोड़ा ठंडा हुआ लेकिन उन्होंने खाना एक टिफिन हमारे साथ जरुर कर दिया अब हम सोचते हें के यह टिफिन में रखे खाने पर सुबह किसका नाम खुदा ने लिखा हे सुबह ही पता चल पायेगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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