दोस्तों एक हे उत्सव शर्मा जो हे तो पढ़ा लिखा लेकिन पुरे देश में उसने खुद को अपराध में लिप्त कर विज्ञापित कर लिया हे यह पढ़ा लिखा नोजवान उत्सव शर्मा देश में निरंतर चल रहे हालातों से दुखी हे और हालत यह हें के उसके फ्रस्ट्रेशन ने दोषी जो भी रहा हे उसे अगर अदालत ने छोड़ा हे तो उसपर हल्का हमला करना सिखा दिया हे हमला भी केवल अदालत परिसर में ही होता हें ।
दोस्तों गणतन्त्र पर हम देश के विधान और विधान के तहत बनाई गयी विधियों पर गर्व करते हें लेकिन सब जानते हें के विधि कानून और नियम किताबों का सजावटी सामन बन गये हें इनकी क्रियान्विति आम जनता के हित में नहीं बलके मुनाफाखोरों, जमाखोरों, सफेदपोश अपराधियों , बाहुबलियों ,भ्र्स्ताचारियों को बचाने में किया जा रहा हे मुर्दा लोगों और पीड़ित गरीबों के लियें कानून एक सपना बन गया हे बस इस विचार ने ही उत्सव शर्मा को एक विशेष मानसिक रोग से ग्रस्त कर दिया हे और जिसे कानून सजा से बचाता हे उसे यह खुद सजा देना चाहता हे इसीलियें इस उत्सव शर्मा ने पहले दी जी पी राठोड जो एक बालिका के यों शोषण और फिर उसकी हत्या के कारण का दोषी था जब अदालत ने उसे कम सजा दी तो इस नोजवान ने भरी अदालत में इस पुलिस अधिकारी के गाल पर भरी सुरक्षा में अदालत के बीचों बीच गाल पर चाकू से ऐसा यादगार घाव बना दिया जिसे वोह अपने जीवन में कभी भुला नहीं सकेंगे इसी तर्ज़ पर कल दिल्ली की अदालत में इस नोजवान ने बहुचर्चित आरुशी के पिता डोक्टर राजेश तलवार को दोषी मानकर बरी होने पर अपना निशाना बनाया और उसी अंदाज़ में उन के गाल पर चाकू से हमला कर दिया कहने को तो यह एक छोटी घटना हे लेकिन हमारे देश के नोजवानों को कानून की यह अपालना कानून का यह मजाक किस दिशा में ले जा रहा हे सोचने की बात हे अगर इसपर हमने चिन्तन मंथन नहीं किया तो देश में एक दिन सदियों पुराना कल वापस आ जाएगा के नोजवान खुद कानून अपने हाथ में लेकर दोषी लोगों को दंडित करने लगेंगे इससे बचने के लियें कानून को जेसा लिखा हे क्रियान्वित करने की मुहीम में छोटे बढ़े का भेद भाव भुला कर मेरे साथ जुड़ कर इस मुहीम को तेज़ करें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
25 जनवरी 2011
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बहुत अच्छा लिख रहे हैँ अख्तर भाई ।
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