तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
24 दिसंबर 2010
आरक्षण मामले में राजस्थान सरकार को हाईकोर्ट की सलाह
बात गुर्जर आरक्षण मामले से शुरू हुई थी लेकिन मामला जब हाईकोर्ट तक पहुंचा तो फिर यह बात केवल गुर्जर आरक्षण की नहीं रही एक संविधान और एक देश के कानून के साथ देश की जनता के हालातों की बात बन गयी , सरकार द्वारा केवल बेवकूफ या फ़िल्मी डाइलोग में कहें के मामू बनाने के लियें गुर्जरों को आरक्षण का कानून बनाया था जिसे हाईकोर्ट ने पहली फुर्सत में बिना पढ़े लिखे लोगों द्वारा बनाया कानू मन कर किनारे पर रख दिया , हाईकोर्ट ने अपने आदेश में राजस्थान सरकार की महत्वपूर्ण विफलताओं की तरफ इशारा किया हे और आरक्षण की नई परिभाषा प्रदर्शित की हे हाई कोर्ट का सीधा सीधा निर्देश हे के बार बार एक हो व्यक्ति को आरक्षण बंद करों और राज्य में सर्वे कराओं के किस जाती के किन लोगों की पिछड़ी स्थित के कारण उन्हें आरक्षण की जरूरत हे हाईकोर्ट ने कहा के जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर आज उच्च वर्गीय धनाड्य स्टेट्स वाले बन गये हें आखिर उन्हें आरक्षण की जरूरत क्यूँ हे और उन्हें आरक्षण क्यूँ दिया जा रहा हे , बात साफ हे हमारे देश के संविधान के निर्माण के वक्त निर्माताओं ने कुछ जातियों को पिछड़ा मान कर उन्हें मुख्य धारा में लाने के लियें केवल दस वर्ष के लियें आरक्षण का लाभ दिया था जिसे फिर बढ़ा दिया गया और अब राजनीती के चलते निरंतर बिना किसी जरूरत के उसी लकीर पर चल कर आरक्षण का लाभ विकसित लोगों को दिया जा रहा हे देश की सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने बार बार कहा हे के आरक्षण का आधार जाती या धर्म नहीं बलके आर्थिक पिछड़ापन होना चाहिए और इसीलियें अब देश की जनता भी आरक्षण के इस नंगे राजनितिक खेल से उब चुकी हे और जनता सरकार से आरपार की लड़ाई के मुड में हे सरकार हे के जाती को ही आरक्षण का आधार बनाये हुए हें नतीजा यह हुआ के आज आरक्षित जातियों में कलेक्टर ,संसद,विधायक ,मंत्री.एस पी हे जबकि सामान्य जाती में आज चपड़ासी भी नहीं मिल रहे हें , सरकार और विपक्ष ने इस मामले में चुप्पी साध कर राजनितिक हित चाहे साध लिए हों लेकिन देश को नफरत गिलाज़त और भुखमरी के इस दोर में धकेल दिया हे जिसमें से निकलने में देश को कोई वर्ष लग जायेंगे । राजस्थान हाईकोर्ट ने बस इसी गलती को सूधारने की तरफ इशारा किया हे और दबे अल्फाजों में साफ़ कहा हे के बस हो चूका बहुत अब साला भर लो और सर्वे करो आरक्षण को जाति का आधार नहीं पिछड़ा पन बनाओ अब देखते हें के राजस्थान सरकार इस मामले को गुर्जरों के दबाव में सुप्रीम कोर्ट किस तरह से ले जाती हे और जब तक हाईकोर्ट के आदेश के सम्मान में आम लोग जो सामान्य जाति के होकर आरक्षण की इस दोड में पिछड़ गये हें उन्हें पिछड़ेपन के दलदल से निकलने के लियें क्या योजना और क्या व्यवस्था हाईकोर्ट के सामने पेश करती हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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