आपका-अख्तर खान

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12 नवंबर 2010

चिरागों को बुझा दो

अब तो बुझा दो
सिसकती यादों के
यह चिराग
विरह की रातों
में सिर्फ तडपन होगी
उजाला
कहां होगा।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. बहुत लाजवाब और उम्दा लिखा है......गहरी बात आसानी से कह दी आपने


    .....अपनी तो आदत है मुस्कुराने की !
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं

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