दोस्ती का
फर्ज़
यूँ क्यूँ अदा करते हो
आस्तीन में
जिनके
पलते हो
उन्हें ही
क्यूँ
ढ्सा करते हो ।
साथ जिनके चलते हो
साथ जिनके
रहते हो
उन लोगों की
पीठ पर ही
चुरा घोंपा
क्यूँ करते हो ।
दोस्तों
दोस्ती का
यह केसा हक
अदा करते हो ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
27 नवंबर 2010
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ाच्छी लगी रचना। आज दोस्ती के मायने ही बदल गये हैं। आभार।
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