ऐ दोस्त
तू अकड़ा
तो भी मिटटी में
नहीं अकड़ा तो
भी मिटटी में
मिल जायेगा
फर्क जब अकड कर
मिटटी में मिलेगा
तब तू रोयेगा चीखेगा
और प्यार से मिटटी में मिला तो
बस तू हंसेगा मुस्कुराएगा
सोच
रावण और सिकन्दर
क्या थे
अकड कर
वोह भी इसी मिटटी पर
चलते थे
उनके अहंकार से
हिलती प्रथ्वी को देख कर
लोग कहते
इनके चलने से
प्रथ्वी चल रही हे
मिटटी उड़ रही हे
लेकिन ना प्रथ्वी हिलती थी
न मिटटी उडती थी
यह ओ बस रावण और सिकन्दर
की नादानी पर
हंसती थीं
और देख लो
अजर अमर रावण
और अजय सिकन्दर
आज इसी मिटटी में मिल गये हें
इसलिए दोस्तों अकड कर मत चलो
झुको प्यार करो बस
यही मिटटी तुम्हें यहीं
स्वर्ग दिखा देगी ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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