आपका-अख्तर खान

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31 अक्टूबर 2010

कविताएँ और कवि भी..: थोड़ा ठहरने दे

हाँ यूँ ही
किसी के
ब्लॉग पर
में चला गया था
बस यह
अलफ़ाज़ वहीं से
चुराए हें
जिनके हे
यह अलफ़ाज़
बस वोह तो
इन्हें ढूंढते हें
और हम
इन्हीं
अल्फाजों से
सरे बाज़ार
अपनी दुकान
सजा बेठे हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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