माँ वोह हे
जो अपने सुख भुलाकर
सिर्फ और सिर्फ
तेरे लियें रो देती हे।
में जरा भी दुखी होता हूँ
तो मन मेरी रो देती हे
मां ही तो हे
जो भाईयों के
बिखरे रिश्तों को
प्यार के धागों में
पिरो देती हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
22 अक्तूबर 2010
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माँ ऐसी ही होती है.... सुंदर कविता अख्तर अंकल...
जवाब देंहटाएंमाँ को परिभाषित करना बहुत कठिन
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
Mamata se paripoorn kavita.
जवाब देंहटाएं..............
यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
mamtamayi maa ka swaroop avarnaniya hai!
जवाब देंहटाएंsundar bhaav!
regards,
ममतामयी मां को नमन।
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