हमें केवल तख्त पर एक नहीं होना हे ,
अपितु वक्त पर भी एक होना हे ,
अक्सर हम तख्त पर तो एक हो जाते हें ,
लेकिन जब वक्त आता हे ,
तो धीरे से खिसक लेते हें,
यदि देश के संत मुनि-आचार्य
तख्त और वक्त पर एक हो जाएँ
तो साज और देश का काय कल्प हो जाए ।
मुनि तरुण सागर जी के भाषणों का अंश।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 अक्तूबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
saarthak sandesh deti acchhi kavita.
जवाब देंहटाएं... bahut sundar !!!
जवाब देंहटाएंakhtar ji samyikata avam ojpurn aapki kavita behad pasand aai,jo kabile tarrif bhi hai.
जवाब देंहटाएंpoonam