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02 अक्तूबर 2010

दान ऐसा लाभदायक नहीं

अश्रद्धया हुर्त तपस्तप्त क्रत च यत;
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ।
श्री गीता के १७ वें अध्याय के २८वेन श्लोक में भगवान ने कहा हे
हे अर्जुन
बिना श्रद्धा के किया हुआ हवन
दिया हुआ दान
तपा हुआ तप
और जो कुछ भी किया हुआ शुभ कर्म हे
वेह समस्त असत
इस प्रकार कहा जाता हे
इसलिए वोह न तो इस लोक में लाभदायक हे
और ना मरने के बाद ही ।
संकलन अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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