अश्रद्धया हुर्त तपस्तप्त क्रत च यत;
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ।
श्री गीता के १७ वें अध्याय के २८वेन श्लोक में भगवान ने कहा हे
हे अर्जुन
बिना श्रद्धा के किया हुआ हवन
दिया हुआ दान
तपा हुआ तप
और जो कुछ भी किया हुआ शुभ कर्म हे
वेह समस्त असत
इस प्रकार कहा जाता हे
इसलिए वोह न तो इस लोक में लाभदायक हे
और ना मरने के बाद ही ।
संकलन अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)