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30 अक्तूबर 2010

तुम पत्थर हो

तुम पत्थर हो
यह तो मुझे पता हे
लेकिन में नहीं समझ पाटा हूँ
के तुम जड हो
या मूर्ति हो
या फिर भगवान हो
बस तुम पत्थर हो
यह मुझे पता हे
अब देखो
तुम्हें गड़ने वाला
सनतराश आ गया हे
देखते हें
वोह तुम्हें मूर्ति के लियें
गढ़ता हे
या फिर तुम्हें दीवारों में चुनता हे
या फिर तुम्हें यूँ ही लोगों के ठोकरें लगाने के लियें
बीच सडक में छोड़ा जाता हे
तुम पत्थर हो जड हो
लेकिन फिर भी
शायद कुछ नहीं
शायद बहुत कुछ हो ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. तुम पत्थर हो जड हो
    लेकिन फिर भी
    शायद कुछ नहीं
    शायद बहुत कुछ हो ।

    इतनी द्विविधा क्यों अकेला जी ... किसी एक कुर तो बैठिये ...:)
    (कृपया टंकण की त्रुटियाँ ठीक कर लें)

    जवाब देंहटाएं

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