तुम पत्थर हो
यह तो मुझे पता हे
लेकिन में नहीं समझ पाटा हूँ
के तुम जड हो
या मूर्ति हो
या फिर भगवान हो
बस तुम पत्थर हो
यह मुझे पता हे
अब देखो
तुम्हें गड़ने वाला
सनतराश आ गया हे
देखते हें
वोह तुम्हें मूर्ति के लियें
गढ़ता हे
या फिर तुम्हें दीवारों में चुनता हे
या फिर तुम्हें यूँ ही लोगों के ठोकरें लगाने के लियें
बीच सडक में छोड़ा जाता हे
तुम पत्थर हो जड हो
लेकिन फिर भी
शायद कुछ नहीं
शायद बहुत कुछ हो ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
30 अक्तूबर 2010
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तुम पत्थर हो जड हो
जवाब देंहटाएंलेकिन फिर भी
शायद कुछ नहीं
शायद बहुत कुछ हो ।
इतनी द्विविधा क्यों अकेला जी ... किसी एक कुर तो बैठिये ...:)
(कृपया टंकण की त्रुटियाँ ठीक कर लें)