दोस्तों देखलो
दोर यह
अजीब चल रहा हे
हर शक्स की आस्तीन में
देख लो
जहरीला सांप
पल रहा हे ,
देख लो
खुद अपनी आँखों से
कल जो था
आप के सामने
मेरी खुशियों में शरीक
आज पीछे से मेरे
वही मेरे लियें
जहर उगल रहा हे ।
दोर यह केसा चला हे
हर आस्तीन में
सांप पल रहा हे ।
अकह्तर खान अकेला कोटा रस्ज्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
19 अक्तूबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत ही लाजबाव पंक्तियाँ। कटु सत्य व्यक्त करती लाजबाव रचना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये नया ताजा लेख मेरे ब्लोग "Mind and body researches" पर बैक्टीरिया करेंगे अब वायरस का सफाया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजबाव पंक्तियाँ। कटु सत्य व्यक्त करती लाजबाव रचना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये नया ताजा लेख मेरे ब्लोग "Mind and body researches" पर बैक्टीरिया करेंगे अब वायरस का सफाया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजबाव पंक्तियाँ। कटु सत्य व्यक्त करती लाजबाव रचना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये नया ताजा लेख मेरे ब्लोग "Mind and body researches" पर बैक्टीरिया करेंगे अब वायरस का सफाया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजबाव पंक्तियाँ। कटु सत्य व्यक्त करती लाजबाव रचना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये नया ताजा लेख मेरे ब्लोग "Mind and body researches" पर बैक्टीरिया करेंगे अब वायरस का सफाया।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .... सचमुच दौर कुछ ऐसा ही चल रहा है....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंहालात तो ऐसे ही हैं