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19 अक्तूबर 2010

दोर यह अजीब चल रहा हे

दोस्तों देखलो
दोर यह
अजीब चल रहा हे
हर शक्स की आस्तीन में
देख लो
जहरीला सांप
पल रहा हे ,
देख लो
खुद अपनी आँखों से
कल जो था
आप के सामने
मेरी खुशियों में शरीक
आज पीछे से मेरे
वही मेरे लियें
जहर उगल रहा हे ।
दोर यह केसा चला हे
हर आस्तीन में
सांप पल रहा हे ।
अकह्तर खान अकेला कोटा रस्ज्थान

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही लाजबाव पंक्तियाँ। कटु सत्य व्यक्त करती लाजबाव रचना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये नया ताजा लेख मेरे ब्लोग "Mind and body researches" पर बैक्टीरिया करेंगे अब वायरस का सफाया।

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  5. बहुत खूब .... सचमुच दौर कुछ ऐसा ही चल रहा है....

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  6. बहुत खूब ..
    हालात तो ऐसे ही हैं

    जवाब देंहटाएं

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