खता मेरी निगाहों की हे
तो फिर आप
चांदनी को
क्यूँ सजा देती हो
जरा रुख से
नकाब तो हटा लो
अपने सुंदर चेहरे
से चांदनी को
छु भर लेने से
यु क्यूँ बचाती हो
अब तो दिखा दो
यह चाँद सा चेहरा
इससे निकलने वाली
चांदनी की खुशनुमा किरणों से
तुम हमें क्यूँ बचाती हो ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 अक्तूबर 2010
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बहुत रूमानी सी रचना
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