देश में
लोकतंत्र के नाम पर
लगातार
हो रहे
भीड़ तन्त्र के कब्जे से
मेरे इस देश को
छुड़ा दो यारों ,
या तो देश को साक्षर करो
देश को
स्वावलम्बी करो
नहीं तो फिर
देश के निरक्षर लोगों को
वोट डालने का अधिकार
लोक तन्त्र बचाने के लियें
छीन लो यारों
मतदाता अग्रत
शिक्षित समझदार हुआ
तो बस
फिर वोह
सुयोग्य
जन प्रतिनिधि चुनेगा
और इसी से
देश का उद्धार होगा
जेसे बच्चों की संख्या का कानून बना हे
वेसे अगर
मिडिल तक पढाई का
कानून बने
तो देश सुधर जाएगा
केसा लगा दोस्तों मेरा यह मजाक
क्योंकि पढ़े लिखे लोग
संसद और विधानसभा में
केसे जूतम पैजार करते हें
इन सब नज़रों को देख कर
हम और आप खुद को
बेज़ार करते हें
पढ़े लिखे लोगों की जमात के चुनाव
जेसे पत्रकार सन्गठन और वकीलों का संगठन
इन के चुनाव भी हम देखते हें
और केसे गधों को यह चुनते हें
जब यह सामने आता हे
तो फिर हम यही कहते हें
के पढ़े लिखों का चुनाव यह हे
तो बस फिर तो निरक्षरता ही अच्छी हे
क्योंकि निरक्षरों को वोट का धिकार नहीं दिया
तो बस उनकी फिर कोन सुनेगा
इसलियें दोस्तों
मेरा देश भवन भरोसे चल रहा हे
बस इसे यूँ ही चलने दो
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
26 अक्तूबर 2010
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बहुत अच्छी कविता।
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