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05 अक्टूबर 2010

राजस्थान हाईकोर्ट ने की सरकारी वकीलों की खिंचाई

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मुकदमें की सुनवाई के दोरान सरकारी वकीलों को लापरवाह मन हे हाईकोर्ट की टिप्पणी हे के अदालतों में सरकारी वकील टाइम पर य्प्स्थित नहीं होते हें और जब उपस्थित हो भी जाते हें तो उनके पास पत्रावलियां नहीं होती हे या फिर वोह पेरवी के लियें तय्यार नहीं होते हें । राजथान हाईकोर्ट की यह बात शत प्रतिशत सही हे , हम जिला लेवल से हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट लेवल तक अगर सरकारी सुवाई का तरीका देखें तो बहुत ही हास्यास्पद सा तरीका हे पहले तो इन पदों पर राजनितिक नियुक्तियां होती हे इसलियें यह टी हे के इन्साफ प्रभावित होता हे दुसरे जिन वकीलों को सरकार की पेरवी के लियें नियुक्त किया जाता हे उनका मेहनताना ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर होता हे , जिला लेल पर सरकारी वकील को ८ हजार रूपये प्रतिमाह मिलते हें जबकि दूसरों को सात हजार रूपये प्रतिमाह मिलते हें जो एक चपड़ासी से भी बहुत कम हे आप देखिये की छोटी अदालत में जहां केवल आपराधिक प्रकरणों की सुनवाई क्या जाना हे वोह भी छोटी प्रक्रति के मामलों की सुनवाई क्या जाना हे वहां सरकार जिन्हें स्थायी नियुक्ति देती हे उनको पहले तो सिविल काम नहीं करना पढ़ता और वोह सरकारी कर्मचारी की हेसियत से सारी सुख सुविधाएं भोगते हें साथ ही यह लोग ४० से ६० हजार रूपये प्रतिमाह वेतन और हटने पर इससे आधी पेंशन पाते हें जबकि इन बेचारों को जो मिलता हे वोह तो कपड़े धोने और पेट्रोल को खर्च में भी पूरा नहीं होता अब इन नियुक्त सरकारी वकीलों से हम अच्छे और गुणवत्ता वाले कामा की उम्मीद भी केसे कर सकते हें। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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