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12 सितंबर 2010

में फुल हूँ ......


में फुल हूँ
बागबान का
कोई डाल पर
लगा हे
तो कोई मुरझा कर
नीचे
ज़मीं पर
पढ़ा हे ,
में फुल हूँ
बागबान का
खुशबु तो हे
मुझ में
चाहे
में मुरझा
गया हूँ
हवाओं का झोंका
जो तेज़ आया हे
उसी से टकराकर
आज में नीचे गिरा हूँ
माली जो
बना हे
मेरे बाग़ का
बस देखना
आयेगा वोह पास मेरे
झुकेगा ज़मीं पर
और मुझे उठाएगा
मुझे घर
अपने लेजाकर
बिक्री के लियें
अपनी दुकान पर सजाएगा
देख लेना
मुझे कोई तो
अर्थी सजाने के लियें
कोई भगवान पर चढाने के लियें
कोई वीरों पर चक्र लगाने के लियें
तो कोई
अपने महबूब को पटाने के लियें
आएगा और मुझे
इस माली से खरीद कर लेजायेगा
में बेचारा
डाली पर था
तो तितलियों भंवरों से था परेशान
हवाओं ने मुझे
डाली से अलग कर क्या हेरान
आज भी देखो मेरा नसीब
में फुल हूँ
खुशबु हो चाहे जितनी मुझ में
लेकिन कभी जुड़ा,कभी अर्थी
कभी पेरों तले रोंदा जाना ही
तो अब मेरा नसीब हे
यही हे बस
मुझे अब खुद को खुद से समझाना ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।

    एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें

    जवाब देंहटाएं

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