आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

13 सितंबर 2010

बेरहम हें वोह लोग ...


कितने
बेरहम
हें वोह लोग,
कुदरत के
हुस्न का
रोज़ वोह
कत्ल
किया करते हें ,
अपने शोक
के खातिर
रोज़ नयीं
तितलियों को
अपनी किताबों में
रखा करते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. बड़ा ही भावपूर्ण कविता है आपकी .........बहुत बच्छा लगा ............

    जवाब देंहटाएं

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...