
कितने
बेरहम
हें वोह लोग,
कुदरत के
हुस्न का
रोज़ वोह
कत्ल
किया करते हें ,
अपने शोक
के खातिर
रोज़ नयीं
तितलियों को
अपनी किताबों में
रखा करते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
बड़ा ही भावपूर्ण कविता है आपकी .........बहुत बच्छा लगा ............
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