एक मुसाफिर
ट्रेन में सफर कर रहा था
टिकिट चेकर के आते ही
मुसाफिर ने टिकिट की तलाश शुरू की
कभी अटेची में तो कभी जेबों में
इधर उधर टिकिट की तलाश पर भी
जब टिकिट नहीं मिला
तो टिकिट चेकर ने कहा
छोड़ो भाई
आप सम्भ्रान्त दीखते हे
मान लेते हें आपके पास टिकिट हे
लेकिन नोजवान तो गुस्सा गया
बोला में तुम्हें टिकिट
तुम्हें दिखाने के लियें नहीं ढूंढता हूँ
टिकिट तो में इसलियें ढूंढ़ रहा हूँ
के मुझे यह तो पता लगे
के मुझे जाना कहाँ हे।
ट्रेन में बेठे दुसरे मुसाफिर
सोचने लगे के आज नोजवान का क्या भरोसा
उन्हें अपनी मंजिल का ही पता नहीं
और सफर पर सफर किये जा रहे हें सोचते हें
शायद इसीलियें मेरा भारत महान हो । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
11 अगस्त 2010
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बेहतरीन व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंBahut pasnd aayi aapki ye rachna..sach kaha aaj ka nojavan kahana ja raha hai isse andaja lagaya ja sakta ha..mubarak..
जवाब देंहटाएंKYA BAT HAI AKHTAR BHAI. IS SHANDAR TIKHE WYANGY KE LIYE BADHAI KUBUL KAREN.
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