यह सुबह की चकाचोंध
फिर कहां से आई
रात के घटाटोप
खुशनुमा अँधेरे कहा हें
इस चकाचोंध में
यादें उनकी सपने उनके
ना जाने कहां खो गये
रात थी तो आस थी
वोह नहीं तो सपनों में
उनकी याद थी
यह सुबह उजालों की चकाचोंध
कहाँ से आई
रात के अंधेरों का मेरा सुकून
बेचेनी ,करवटें और यादें उनकी
यही तो थी कमाई
जीवन भर की मेरी
वोह इस उजाले में
न जाने कहां कहां गयी
यारों यह सुबह का उजाला
तुम लेलो
मुझे मेरी रात
रात का अँधेरा
वोह बेचेनी , वोह करवटें
वोह सपने वोह मीठी यादें
फिर से लोटा दो
उजाले तुम लेलो
अन्देरे मुझे सम्भला दो .........
००००० अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
11 अगस्त 2010
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मुझे मेरी रात
जवाब देंहटाएंरात का अँधेरा
वोह बेचेनी , वोह करवटें
वोह सपने वोह मीठी यादें
फिर से लोटा दो.... bhawpoorn
अच्छा नक्शा खींचा है.
जवाब देंहटाएं'स्वतंत्रता दिवस पर' लेख आपकी टिप्पणी का मुन्तज़िर है.
http://haqnama.blogspot.com/2010/08/independence-day-sharif-khan.html
nice post
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