आपका-अख्तर खान

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11 अगस्त 2010

मेरे अँधेरे कहां गये

यह सुबह की चकाचोंध
फिर कहां से आई
रात के घटाटोप
खुशनुमा अँधेरे कहा हें
इस चकाचोंध में
यादें उनकी सपने उनके
ना जाने कहां खो गये
रात थी तो आस थी
वोह नहीं तो सपनों में
उनकी याद थी
यह सुबह उजालों की चकाचोंध
कहाँ से आई
रात के अंधेरों का मेरा सुकून
बेचेनी ,करवटें और यादें उनकी
यही तो थी कमाई
जीवन भर की मेरी
वोह इस उजाले में
न जाने कहां कहां गयी
यारों यह सुबह का उजाला
तुम लेलो
मुझे मेरी रात
रात का अँधेरा
वोह बेचेनी , वोह करवटें
वोह सपने वोह मीठी यादें
फिर से लोटा दो
उजाले तुम लेलो
अन्देरे मुझे सम्भला दो .........
००००० अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

3 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे मेरी रात
    रात का अँधेरा
    वोह बेचेनी , वोह करवटें
    वोह सपने वोह मीठी यादें
    फिर से लोटा दो.... bhawpoorn

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा नक्शा खींचा है.
    'स्वतंत्रता दिवस पर' लेख आपकी टिप्पणी का मुन्तज़िर है.

    http://haqnama.blogspot.com/2010/08/independence-day-sharif-khan.html

    जवाब देंहटाएं

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