दोस्तों देश में इन दिनों साम्प्रदायिकता के चलते भाई भाई का कत्ल और फिर देश की सम्पत्ति का नुकसान केवल यह सोच कर के यह इसकी वोह उसकी सम्पत्ति हे बाद में फिर भी मुआवज़े और सरकारी खजाना खाली कुल मिला कर दंगाई सोचते हें के हम देश भक्त हें हमने बदला ले लिया हे लेकिन जरा दंगाइयों और इनके नेताओं जरा सोचो हम किसे मारते हें हम किसकी सम्पत्ति जलाते हें अरे पागलों कोई भी मकान ,दुकान अख्तर या श्याम की नहीं होती यह तो बस देश की राष्ट्र की होती हे इस पर केवल दो लेने पेश हें आपसे निवेदन हे के इन्हें जरा भी पसंद मत करना।
दंगाइयों ,उजाड़े हें तुमने
कई घर ,कई शहर दंगों में
अगरतुम कहते तो वही घर
आज गुलशन बन जाते ।
उजाड़े हे
गुलिस्ता तुमने
जिन हाथों से दीवानों
अगर तुम कहते तो
उनसे वीराने
संवर जाते।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
18 अगस्त 2010
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बहुत सही!
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