आपका-अख्तर खान

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18 अगस्त 2010

उजाड़े हें दीवानों

दोस्तों देश में इन दिनों साम्प्रदायिकता के चलते भाई भाई का कत्ल और फिर देश की सम्पत्ति का नुकसान केवल यह सोच कर के यह इसकी वोह उसकी सम्पत्ति हे बाद में फिर भी मुआवज़े और सरकारी खजाना खाली कुल मिला कर दंगाई सोचते हें के हम देश भक्त हें हमने बदला ले लिया हे लेकिन जरा दंगाइयों और इनके नेताओं जरा सोचो हम किसे मारते हें हम किसकी सम्पत्ति जलाते हें अरे पागलों कोई भी मकान ,दुकान अख्तर या श्याम की नहीं होती यह तो बस देश की राष्ट्र की होती हे इस पर केवल दो लेने पेश हें आपसे निवेदन हे के इन्हें जरा भी पसंद मत करना।
दंगाइयों ,उजाड़े हें तुमने
कई घर ,कई शहर दंगों में
अगरतुम कहते तो वही घर
आज गुलशन बन जाते ।
उजाड़े हे
गुलिस्ता तुमने
जिन हाथों से दीवानों
अगर तुम कहते तो
उनसे वीराने
संवर जाते।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

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