यह धुप ढलने के बाद
शाम ढलते
दोनों वक्त
सूरज डूब रहा हे ,
सच लगता हे
के सूरज
जिसमे
ताकत हे
दुनिया को
झुलसाने की
वोह भी आज
बादलों का
मोहताज हे
डूबता सूरज को देख
मुझे ऐसा लगता हे
जेसे
समुन्द्र सी तेरी आँखों में
इस शाम का
सूरज डूबेगा।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
20 अगस्त 2010
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किसी के झील सा गहरा आँख में जब समंदर गिरकर बुझ जाता है तब जाकर मोहब्बत रोशन होती है... अख़्तर भाई हमरा तहेदिल से मुबारक़बाद क़बूल फ़रमाइए इस बेहतरीन कविता पर!!
जवाब देंहटाएंअख्तर जी क्या आप हिन्दू जागरण नाम से कोई ब्लाग चला रहे हैं। अगर ऐसा है तो इसके परिणाम के वारे में जरूर विचार कर लिजीएगा।
जवाब देंहटाएंहम तो आपको सर्वधर्म सम्भाव में विस्वास रखने वाला व्यक्ति मानते रहे हैं वेशक आपकी सोच हमारे नवारे में ऐसी न हो।
जिस तरह के झूठ इस ब्लाग के माध्यम से फैलाए जा रहे हैं वो ठीक नहीं हैं। मुसलिम आतंकवादी ये काम कर रहे हैं हमें कोई प्रौवलम नहीं ले लेकिन आप जैसे लोगों से ऐसी उम्मीद नहीं।