आपका-अख्तर खान

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11 जुलाई 2010

अज़ान से नमाज़ का सफर

दोस्तों एक हकीकत एक फलसफा के जब कहीं अज़ान होती हे तो समझा जाता हे के मुसलमान को नमाज़ के लियें बुलाया गया हे और अज़ान के बाद वोह अपनी नमाज़ अदा करता हे इबादत करता हे लेकिन मुसलमान के घर जब बच्चा पैदा होता हे तो बच्चे के पैदा होते ही उस के कान में अज़ान दिलवाई जाती हे लेकिन इस अज़ान के बाद कोई नमाज़ नहीं होती और जब किसी भी मुस्लिम की मोत होती हे तब इस अज़ान की नमाज़ उस वक्त मय्यत की नमाज़ बिना अज़ान के होती हे और यही जिंदगी का फलसफा हे के जिंदगी फानी हे सब को आनी हे लेकिन खुदा ने इसका वक्त सिर्फ एक अज़ान से नमाज़ तक के सफर यानी तीन मिनट आ वक्त दिया हे और यही जिनगी की नंगी हकीकत हे तो जनाब क्यूँ हम इस जिंदगी पर इतरायें , गुर्राएँ, इसमें तो बी प्यार ही प्यार दें और प्यार ही प्यार रहे ताकि लोग यही कहें के करनी ऐसी कर चले के जग सारा रोये। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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