आपका-अख्तर खान

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25 जुलाई 2010

गुल को रोंदा हां हा .. खार ने रुलाया हा हा

दोस्तों मुझ से तो कुछ सीखो
पिछले जन्म की ही तो बात थी
खुशबु दार नाज़ुक फुल था में
जो आया सुंघा जुड़े में लगाया
मुरझाया जब में
तो मुझे सभी ने जिन पे गिराया
किसी ने पेरों तले रोंदा मुझे
तो किसी ने गंदगी में गिराया मुझे
दोस्तों मेरा यह भी जन्म हे
खुदा ने मुझे खार{काँटा}बनाया हे
वोह देखों उधर देखो
खुद अपने पेरों का लहू धो रहा हे
मुझे पेरों से रोंदने पर खुद रो रहा हे
में मेरे पिछले जन्म के गुलों की '
आज सुरक्षा किये जा रहा हूँ
अपने इस जन्म पर खुश हूँ में
लेकिन पिछले जन्म पर रोये जा रहा हूँ में।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं

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