आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

29 जुलाई 2010

कमबख्त कलदार की तरह थूकते हें

चांदनी रात में
ग़ालिब चले जा रहे थे
मोड़ आया मुड़ गये
फिर चले
नीचे कुछ पढ़ा देखा
झुक गये
साथ जाने वालों ने
ग़ालिब को जब देखा
तो वोह शायराना अंदाज़ में
बडबडा रहे थे
किसी के थूक को
कलदार समझ कर उठा रहे थे
ग़ालिब कहते थे
कमबख्त लोगों का क्या कहें
वोह अब तो थूकने भी
कलदार रूपये की तरह लगने लगे हे
ग़ालिब इसी बुदबुदाहट के साथ
थूक से सने अपने हाथ को
कुरते से अपने पोंछते जा रहे थे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...