चांदनी रात में
ग़ालिब चले जा रहे थे
मोड़ आया मुड़ गये
फिर चले
नीचे कुछ पढ़ा देखा
झुक गये
साथ जाने वालों ने
ग़ालिब को जब देखा
तो वोह शायराना अंदाज़ में
बडबडा रहे थे
किसी के थूक को
कलदार समझ कर उठा रहे थे
ग़ालिब कहते थे
कमबख्त लोगों का क्या कहें
वोह अब तो थूकने भी
कलदार रूपये की तरह लगने लगे हे
ग़ालिब इसी बुदबुदाहट के साथ
थूक से सने अपने हाथ को
कुरते से अपने पोंछते जा रहे थे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 जुलाई 2010
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अरे अख्तर भाई, ग़ालिब ही मिले थे?
जवाब देंहटाएंवैसे लिखा मस्त है।
…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।