जन्नत की तलाश में
कहां इधर उधर भटक रहे हो
में बताता हूँ
हाँ देखो यहीं जन्नत हे ।
कभी किसी रोते हुए को
हंसा कर तो देखों
समझ जाओगे
के हाँ यहीं जन्नत हे ।
कभी किसी रूठे हुए को
मना कर तो देखो
समझ जाओगे
हाँ यहीं जन्नत हे ।
कभी किसी गिरते हुए को
उठा कर तो देखों
समझ जाओगे
के हाँ यहीं जन्नत हे ।
कभी किसी सोते हुए को
जगा कर तो देखो
कभी किसी शेतान को
फंसा कर तो देखों
समझ जाओगे
के हाँ जन्नत यहीं हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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