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18 अप्रैल 2010

रोता हुआ नर्गिस का फूल

किसी शायर ने खा हे के ; हजारों साल नर्गिस अपनी बेनुरी पे रोती हे , बड़ी मुश्किल से होता हे चमन में दीदावर पैदा कहने को तो यह शेर करोड़ों करोड़ बार पढ़ा जाता रहा हे लेकिन इसका अर्थ सभी अपने अपने नजरिये से निकालते हें तो दोस्तों इसकी सच्चाई आज यह हे के अब नर्गिस रोती नहीं और उसके दीदावर बड़ी मुश्किल से पैदा नहीं हो रहे हें बलके अब उसके दिदाव्रों की लाइन लगी हुई हे। जी हाँ यह सच हे नर्गिस एक खुबसुरत फूल का नाम हे जिसे देकने के लियें लोग तो तरसते हें लेकिन देख नहीं सकते थे यह फूल दक्षिणी अफ्रीका में मिलता हे वहा यह फूल अर्ध रात्री यानी आधी रात के बाद खिलता हे और कुछ वक्त के बाद ही मुरझा क्र गिर जाता हे इसलियें आधी रात को फूल खिलने के कारण उसकी खूबसूरती कोई देख नहीं पाटा था और इसीलियें शायर ने उसे रोना और बड़ी मुश्किल में उसका चमन में दीदावर पैदा होना खा हे लेकिन आजकल यह बात नहीं हें दक्षिणी अफ्रीका में हालात बदल गये हें अब वहां पर्यटकों को लुभाने के लियें अर्ध रात्री तक जगाया जाता हे और जहां नर्गिस के पोधे हें वहां उन्हें लेजाकर वक्त से पहले ही बिठा दिया जाता हे जिस नर्गिस के फूल को खिलने के बाद दीदावर नहीं मिलता था आज उसी फोल को खिलता हुआ देखने के लियें हजारों लोग बेताबी से इन्तिज़ार करते हें और जब यह नर्गिस का फूल खिलता हे तो इसकी खूबसूरती और खुशबु से देखने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हें और जब कुछ पल में यह खुबसूरत फूल मुरझाता हे तब वोह एक डीएम सदमे में डूब जाते हें तो दोस्तों यह हे नर्गिस के खुबसुरत फूल के दीदावर की कहानी । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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