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30 जून 2025

अदालतों में दिन प्रतिदिन की सुनवाई के उच्च न्यायालय के सर्कुलर को रद्द कर नया व्यवहारिक सर्कुलर जारी करने की मांग को लेकर , एडवोकेट जमील अंसारी का माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय को खुला पत्र

 अदालतों में दिन प्रतिदिन की सुनवाई के उच्च न्यायालय के सर्कुलर को रद्द कर नया व्यवहारिक सर्कुलर जारी करने की मांग को लेकर , एडवोकेट जमील अंसारी का माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय को खुला पत्र
कोटा 30 जून ,, सुप्रीमकोर्ट के त्वरित सुनवाई के आदेश को लेकर , माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने जो त्वरित सुनवाई मामले में समयबद्ध सुनवाई का दिन प्रतिदिन सुनवाई का सर्कुलर जारी किया है , उसे अव्यवहारिक बताते हुए उक्त सर्कुलर को न्यायहित में संशोधन करने , नए दिशा निर्देश जारी करने की मांग को लेकर , विस्तृत कारण बताते हुए , कोटा के एडवोकेट जमील अहमद अंसारी ने , माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश महोदय से अपील की है ,
कोटा के वरिष्ठ वकील जमील अहमद अंसारी ने , सुप्रीमकोर्ट के आदेश यशपाल जैन बनाम सुशीला देवी मामले में , सिविल मामलों के त्वरित निस्तारण के दिशा निर्देशों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार महोदय ने , त्वरित निस्तारण को लेकर जो एक सर्कुलर दिनांक 15 अप्रेल 2024 को जारी कर राजस्थान की अधीनस्थ न्यायालयों को दिशा निर्देश के साथ पाबंद करते हुए निकाला है , उसे प्रश्नगत करते हुए , सिविल प्रक्रिया संहिता और पूर्व न्यायिक दृष्टांतों के तहत बदलने की मांग की है , इस मामले में , वरिष्ठ वकील जमील अहमद अंसारी ने माननीय राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश को पूर्व दृष्टांतों , वकीलों की सुनवाई के समय त्वरित दिन प्रतिदिन सुनवाई के नाम पर होने वाली परेशानियौं , ,मानसिक तनाव को गिनाते हुए उक्त सर्कुलर को संशोधित करने का आग्रह भी माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय से किया है , एडवोकेट जमील अहमद अंसारी , कोटा में सिविल मामलों के वरिष्ठ वकील है , उन्होंने बताया कि न्याय होंना ही नहीं चाहिए बल्कि न्याय होता हुआ भी दिखना चाहिए , न्याय में देरी न्याय से इन्कारी , तथा न्याय में जल्दबाज़ी न्याय को भूमिगत करना है यह एक स्वीकारित सिद्धांत है ,,जिसे माननीय उच्च न्यायालय ने अलग अलग अपने निर्णयों में दिशा निर्देश जारी कर खुलासा भी किया है , ,एडवोकेट जमील अंसारी ने ,, माननीय मुख्य न्यायधीश राजस्थान उच्च न्यायालय को लिखे गए पत्र में निवेदन किया कि पुराने मामले जिनकी स्टेज अलग अलग है क्या वोह मामले दिन प्रतिदिन सुनवाई के नाम पर त्वरित निस्तारण किया जाना सम्भव है ,न्यायालय में प्रस्तुत नज़ीरों का अवलोकन भी सम्भव नहीं है , एक वकील के लिए पत्रावली का बहस के हिसाब से पढ़ना , अलग अलग स्टेज पर पत्रावली की कार्यवाही में शामिल होना उसे तय्यारी और अगर कोई आदेश उसकी निगाह में विधि विरुद्ध है जिसे अपील में , निगरानी में प्रश्नगत किया जाना न्यायसंगत है, तो उसकी सुनवाई के लिए भी उसके पास प्राथमिक अवसर नहीं रह पाता है , एडवोकेट जमील अहमद अंसारी ने बताया कि माननीय उच्च न्यायलय का 41 वर्ष पुराने मामले यशपाल जैन बनाम सुशीला देवी सिविल अपील संख्या 4296 / 2023 के मामले में सभी उच्च न्यायालयों को त्वरति निस्तारण के दिशा निर्देश दिए है जिसमे उर्मिला देवी को क़ानूनी प्रतिनिधि के रूप में कैसे रिकॉर्ड पर लिया जाए वाला प्रश्न निहित था ,, इसी निर्णय को आधार बनाकर , माननीय राजस्थान उच्च न्यायलय के रजिस्ट्रार जनरल ने एक सर्कुलर नंबर 04 / पी आई 2024 दिनांक 15 अप्रेल 2024 को जारी कर सभी अधीनस्थ न्यायालयों को , त्वरित निस्तारण के लिए दिशा निर्देश जारी किये , जिससे सभी अधीनस्थ न्यायालय पाबंद हुईं , खासकर कोटा में इस सर्कुलर के आधार पर सुनवाई तय है ,ओर इसी निर्देध के तहत तारीखें दी जा रही हैं ,, एडवोकेट जमील अंसारी ने , उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्णय यशपाल जैन बनाम सुशीला देवी मामले में दिए गए दिशा निर्देशों से इस परिपत्र को अलग बताते हुए कहा है , के उक्त न्यायिक द्रष्टान्त में अलग बिंदु निर्णीत है , और त्वरित सुनवाई मामले में जो सर्कुलर जारी हुआ है , वोह अलग थलग है , इसमें संशोधन ज़रूरी है ,एडवोकेट जमील अंसारी का कहना है , के त्वरित सुनवाई के नाम पर सभी मुक़दमे जो अलग अलग स्टेज पर सुनवाई के लिए तय होते हैं , उन्हें बाँधा नहीं जा सकता , और ऐसा करने से न्याय में भी विफलता की सम्भावनाये होती है , पक्षकारों को अपने केस की बेहतर तय्यारी में दिक़्क़तें आती हैं , जबकि वकीलों के लिए यह व्यवहारिक रूप से असम्भव सा हो जाने से उनके मानसिक स्वास्थ्य और फिर स्ट्रेस होने से स्वास्थ्य पर विपरीत असर पढ़ता है , वकील मानसिक दबाव में रहता है , खुद न्यायिक अधिकारीयों पर भी दबाव होता है , जमील अंसारी ने , उदाहरण देते हुए बताया की कोटा न्यायालय परिसर में मुक़दमों के स्ट्रेस के दबाव में , जगदीश नारायण माथुर , बलवीर स्वरूप भटनागर , बहादुर सिंह जी जैन , आबिद अब्बासी एडवोकेट सहित कई वकील साथी काल का ग्रास बन चुके है ,जबकि सुरेंद्र शर्मा , अहमद हुसैन , सहित कुछ वकील अदालत में सुनवाई के दबाव में ही आकस्मिक बीमार हुए है , ,उन्होंने कहा के मुक़दमों के त्वरित निस्तारण के सभी पक्षधर है , लेकिन उसके कई कारण , न्यायालयों की कमी , जजों की कमी,, मजिस्ट्रेटों की संख्या में कमी , उनके अवकाश , मेटरनिटी अवकाश ,,जैसे कारण भी इसमें शामिल है , अदालतों में रिक्त पदों को शीघ्र भरने , नई अदालतें मुक़दमों की संख्या के अनुपात में खुलवाने सहित कई सुझाव जो माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पूर्व में कई बार दिए हैं , उनकी भी तो कमी पूर्ति ज़रूरी है , एडवोकेट जमील अहमद अंसारी ने कहा , कि यदि अधीनस्थ न्यायालय , सी पी सी की धारा 30 , आदेश 10 , आदेश 12 , आदेश 19 के प्रावधानों का बेहतर तरीके से उपयोग करें , तो कोई भी मुक़दमा पांच वर्षों से अधिक चल ही नहीं पायेगा , राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश महोदय को लिखे अपने 6 पृष्ठ के ज्ञापन में एडवोकेट जमील अहमद ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश और सर्कुलर में विरोधाभास होने की बात कहते हुए इसे संशोधित करने की मांग उठाते हुए , उक्त पत्र को , जनहित याचिका मानकर निर्णीतं करने का भी निवेदन किया है , ,एडवोकेट जमील अंसारी ने , अपने पक्ष समर्थन में उक्त ज्ञापन में , त्वरित सुनवाई मामले में विधि आयोग की 14 वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया है , जबकि अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ 2002 में दस लाख लोगों पर पचास न्यायधीशों की नियुक्ति करने के आदेश, दिशा निर्देश का हवाला दिया है , सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांत 2012 के दो निर्णयों ,, 2003 , 2005 , 2018 ,2022 ,, 1981 , 2024 के कई अन्य दृष्टांतों और दिशा निर्देशों का हवाला भी दिया है , एडवोकेट जमील अंसारी ने कहा है के वकील को न्यायिक कार्यवाही, में सुनवाई के अवसर ऐसे मिलें कि , न्यायलय में न्यायिक कार्यवाही में न्याय होना भी चाहिए और न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए , ऐसा ही सिद्धांत बनाकर दिशा निर्देश हों , ताकि वकीलों की पैरवी उनके द्वारा प्रस्तुत द्रष्टान्त न्यायिक अधिकारियों द्वारा पढ़ने, अवसर पढ़ने पर पक्षकारों की तरफ से , उनके पक्ष को अपीलीय या निगरानी न्यायालय में निर्णीत कराने का अवसर भी मिले ऐसे व्यवहारिक नियम होना ही चाहिए , ,,क्योंकि देश का हर व्यक्ति त्वरित न्याय का पक्षधर है , लेकिन उसके लिए अन्य जो महत्वपूर्ण कमिया हैं , उन्हें भी डिसकस कर , एक व्यवहारिक व्यवस्था त्वरित सुनवाई की बनाना आवश्यक है , जिससे न्यायिक अधिकारी , वकील स्ट्रेस में नहीं रहें , और समय पर अपने पक्ष समर्थन में बहतर से बहतर तरीके से न्यायिक व्यवस्था के तहत बहतरीन पैरवी के साथ , न्यायिक फैसले करवाने के व्यवहारिक व्यवस्था से जुड़ सके , एडवोकेट जमील अंसारी ने , उनके इस पत्र को , जनहित याचिका मानते हुए , इस पर सार्वजनिक ,, न्यायिक हित में ,, पूर्व में जारी सर्कुलर को निरस्त कर , नई व्यवस्था , नए निर्देश जारी करने की प्रार्थना की है , इस ज्ञापन की एक प्रति , एडवोकेट जमील अहमद अंसारी ने माननीय सुप्रीमकोर्ट को भी भेजी है ,, ,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

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