कितनी अजीब है यह शिकायत इनकी,,
रूठूगी मैं तुमसे एक दिन इस बात पे..
जब रूठी थी मैं तो मनाया क्यूँ नहीं..
कहते थे तुम तो करते हो मुझसे प्यार..
जो दिखाया मैने नखरा तो उठाया क्यूँ नहीं..
बुला कर पास सीने से लगाया क्यों नहीं..
पकड़ कर तुम्हारा हाथ मैं पूछूंगी तुमसे..
हक़ अपना मुझ पर तुमने जताया क्यूँ नहीं..
इस धागे का एक सिरा तुम्हारे पास भी तो था..
उलझा था अगर मुझसे तो तुमने सुलझाया क्यूँ नहीं..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)