और बावजूद मुमानिअत सूद खा लेने और नाहक़ ज़बरदस्ती लोगों के माल खाने
की वजह से उनमें से जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया उनके वास्ते हमने
दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है (161)
लेकिन (ऐ रसूल) उनमें से जो लोग इल्म (दीन) में बड़े मज़बूत पाए पर
फ़ायज़ हैं वह और ईमान वाले तो जो (किताब) तुमपर नाजि़ल हुयी है (सब पर
ईमान रखते हैं) और से नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात अदा करते हैं और ख़ुदा और
रोज़े आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं ऐसे ही लोगों को हम अनक़रीब बहुत बड़ा अज्र
अता फ़रमाएंगे (162)
(ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (भी) तो इसी तरह ‘वही’ भेजी जिस तरह नूह और
उसके बाद वाले पैग़म्बरों पर भेजी थी और जिस तरह इबराहीम और इस्माइल और
इसहाक़ और याक़ूब और औलादे याक़ूब व ईसा व अय्यूब व युनुस व हारून व
सुलेमान के पास ‘वही’ भेजी थी और हमने दाऊद को ज़ुबूर अता की (163)
जिनका हाल हमने तुमसे पहले ही बयान कर दिया और बहुत से ऐसे रसूल
(भेजे) जिनका हाल तुमसे बयान नहीं किया और ख़ुदा ने मूसा से (बहुत सी)
बातें भी कीं (164)
और हमने नेक लोगों को बेहिश्त की ख़ुशख़बरी देने वाले और बुरे लोगों को
अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बर (भेजे) ताकि पैग़म्बरों के आने के बाद लोगों
की ख़ुदा पर कोई हुज्जत बाक़ी न रह जाए और ख़ुदा तो बड़ा ज़बरदस्त हकीम है
(ये कुफ़्फ़ार नहीं मानते न मानें) (165)
मगर ख़ुदा तो इस पर गवाही देता है जो कुछ तुम पर नाजि़ल किया है ख़ूब
समझ बूझ कर नाजि़ल किया है (बल्कि) उसकी गवाही तो फ़रिश्ते तक देते हैं
हालाँकि ख़ुदा गवाही के लिए काफ़ी है (166)
बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और ख़ुदा की राह से (लोगों) को रोका वह राहे रास्त से भटक के बहुत दूर जा पडे़ (167)
बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और (उस पर) ज़ुल्म (भी) करते
रहे न तो ख़ुदा उनको बख़्शेगा ही और न ही उन्हें किसी तरीक़े की हिदायत
करेगा (168)
मगर (हाँ) जहन्नुम का रास्ता (दिखा देगा) जिसमें ये लोग हमेशा (पड़े) रहेंगे और ये तो ख़ुदा के वास्ते बहुत ही आसान बात है (169)
ऐ लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से रसूल (मोहम्मद
(स०)) दीने हक़ के साथ आ चुके हैं ईमान लाओ (यही) तुम्हारे हक़ में बेहतर
है और अगर इन्कार करोगे तो (समझ रखो कि) जो कुछ ज़मीन और आसमानों में है सब
ख़ुदा ही का है और ख़ुदा बड़ा वाकि़फ़कार हकीम है (170)
ऐ एहले किताब अपने दीन में हद (एतदाल) से तजावुज़ न करो और ख़ुदा की
शान में सच के सिवा (कोई दूसरी बात) न कहो मरियम के बेटे ईसा मसीह (न ख़ुदा
थे न ख़ुदा के बेटे) बस ख़ुदा के एक रसूल और उसके कलमे (हुक्म) थे जिसे
ख़ुदा ने मरियम के पास भेज दिया था (कि हामला हो जा) और ख़ुदा की तरफ़ से
एक जान थे बस ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और तीन (ख़ुदा) के क़ायल न
बनो (तसलीस से) बाज़ रहो (और) अपनी भलाई (तौहीद) का क़सद करो अल्लाह तो बस
यक्ता माबूद है वह उस (नुक़्स) से पाक व पाकीज़ा है उसका कोई लड़का हो (उसे
लड़के की हाजत ही क्या है) जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है
सब तो उसी का है और ख़ुदा तो कारसाज़ी में काफ़ी है (171)
न तो मसीह ही ख़ुदा का बन्दा होने से हरगिज़ इन्कार कर सकते हैं और न
(ख़ुदा के) मुक़र्रर फ़रिश्ते और (याद रहे) जो शख़्स उसके बन्दा होने से
इन्कार करेगा और शेख़ी करेगा तो अनक़रीब ही ख़ुदा उन सबको अपनी तरफ़ उठा
लेगा (और हर एक को उसके काम की जज़ा व सज़ा देगा) (172)
बस जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया है और अच्छे (अच्छे) काम किए हैं
उनका उन्हें सवाब पूरा पूरा भर देगा बल्कि अपने फ़ज़ल (व करम) से कुछ और
ज़्यादा ही देगा और लोग उसका बन्दा होने से इन्कार करते थे और शेख़ी करते
थे उन्हें तो दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला करेगा (173)
और लुत्फ़ ये है कि वह लोग ख़ुदा के सिवा न अपना सरपरस्त ही पायेगें और न मददगार (174)
ऐ लोगों इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से
(दीने हक़ की) दलील आ चुकी और हम तुम्हारे पास एक चमकता हुआ नूर नाजि़ल कर चुके हैं (175)
बस जो लोग ख़ुदा पर ईमान लाए और उसी से लगे लिपटे रहे तो ख़ुदा भी
उन्हें अनक़रीब ही अपनी रहमत व फ़ज़ल के शादाब बाग़ो में पहुँचा देगा और
उन्हे अपने हुज़ूरी का सीधा रास्ता दिखा देगा (176)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग फ़तवा तलब करते हैं तुम कह दो कि कलाला (भाई बहन)
के बारे में ख़ुदा तो ख़ुद तुम्हे फ़तवा देता है कि अगर कोई ऐसा शख़्स मर
जाए कि उसके न कोई लड़का बाला हो (न माँ बाप) और उसके (सिर्फ) एक बहन हो तो
उसका तरके से आधा होगा (और अगर ये बहन मर जाए) और उसके कोई औलाद न हो (न
माँ बाप) तो उसका वारिस बस यही भाई होगा और अगर दो बहनें (ज़्यादा) हों तो
उनको (भाई के) तरके से दो तिहाई मिलेगा और अगर किसी के वारिस भाई बहन दोनों
(मिले जुले) हों तो मर्द को औरत के हिस्से का दुगना मिलेगा तुम लोगों के
भटकने के ख़्याल से ख़ुदा अपने एहकाम वाजे करके बयान फ़रमाता है और ख़ुदा
तो हर चीज़ से वाकि़फ़ है (177)
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