*एक_अंधा...* भीख मांगता हुआ राजा के द्वार पर पंहुचा।
*राजा को दया आ गयी,*
राजा ने प्रधानमंत्री से कहा,- *"यह भिक्षुक जन्मान्ध नहीं है, यह ठीक हो सकता है, इसे राजवैद्य के पास ले चलो।"*
रास्ते में मंत्री कहता है, "महाराज *यह भिक्षुक शरीर से हृष्ट-पुष्ट है,* यदि इसकी रोशनी लौट आयी तो इसे *आपका सारा भ्र्ष्टाचार दिखेगा*, आपकी शानोशौकत और फिजूलखर्ची दिखेगी।
*आपके राजमहल की विलासिता और रनिवास का अथाह खर्च दिखेगा,*
इसे यह भी दिखेगा कि जनता भूख और प्यास से तड़प रही है, सूखे से अनाज का उत्पादन हुआ ही नहीं, और आपके *सैनिक पहले से चौगुना लगान वसूल रहे हैं।*
शाही खर्चे में बढ़ोत्तरी के कारण *राजकोष रिक्त हो रहा है,* जिसकी भरपाई हम सेना में कटौती करके कर रहे हैं, इससे हजारों *सैनिक और कर्मचारी बेरोजगार* हो गए हैं।
ठीक होने पर यह *भी औरों की तरह ही रोजगार की मांग करेगा* और आपका ही विरोधी बन जायेगा।
मेरी मानिये तो...
*_यह आपसे मात्र दो वक्त का भोजन ही तो मांगता है,_*
इसे आप राजमहल में बैठाकर *मुफ्त में सुबह-शाम भोजन कराइये,*
और
दिन भर इसे *घूमने के लिए छोड़ दीजिये।*
यह _पूरे राज्य में आपका गुणगान करता फिरेगा,_ कि...
*राजा बहुत न्यायी हैं, बहुत ही दयावान और परोपकारी हैं।*
इस तरह *मुफ्त में खिलाने से आपका संकट कम होगा*
और...
आप लंबे समय तक शासन कर सकेंगे।"
*राजा को यह बात समझ में आ गयी,*
वह वापस अंधे के पास गया और दोनों उसे उठाकर राजमहल ले आये।
अब *अँधा राजा का पूरे राज्य में गुणगान करता फिरता है,*
उसे यह नहीं पता कि राजा ने उसके साथ धूर्तता की है,
*छल किया है,*
_वह ठीक होकर स्वयं कमा कर अपनी आँखों से संसार का आनंद ले सकता था।_
*यही हाल सरकारें करती हैं, हमे मुफ्त का लालच देती हैं,*
किंतु...
_आँखों की रोशनी (अच्छी शिक्षा व रोजगार) नहीं देतीं,_
जिससे कि हम उनका भ्रष्टाचार देख पाएं,
उनकी फिजूलखर्जी और गुंडागर्दी देख पाएं,
उनका *शोषण और अन्याय देख पाएं।*
और हम *अंधे की तरह उनका गुणगान करते हैं, कि राजा मुफ्त में सबको सामान देते हैं।*
हम यह नहीं सोचते कि यदि हमें *अच्छी शिक्षा और रोजगार सरकारें दें* तो...
हमें उनकी खैरात की जरूरत न होगी, हम स्वतः ही सब खरीद सकते हैं। पर...
हम *सभी अंधे जो ठहरे,* केवल मुफ्त की चीजें ही हमें दिखती हैं।
*सोचियेगा जरूर*
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