भाई मुकेश शर्मा की वाल से,,
"चमचागीरी बनाम स्वाभिमान"
बैसाखियो के सहारे जंग नही जीती जाती है मैदान-ए-जगं मे लड़ाई हौसले से ही लड़ी जायेगी।
साफ़ा-माला गैंग, गुलदस्ता प्रकोष्ठ के
बधाई
कुमार, स्वयं के या तथाकथित भाईंसाहबों के जन्मदिन पर ज़बरदस्त भागदौड़ मचाने वाले,कार के बोनट पर तलवार से केक काटने वाले, तथाकथित भाईसाहबों के निजी सचिव और ड्राइवरों को बधाइयाँ पेलने वाले,हर मंच में ज़बरदस्ती घुसने वाले सेल्फ़ी किंग,लाइव मोर्चा के राजकुमार,खुद से ज़्यादा तथाकथित बड़े नेता,अफ़सरों,भाईसाहबों की फ़ोटो डालने वाले,अफ़सरों के प्रमोशन और ट्रांसफ़र पर 100-200 लोगों को टेग करके बधाइयाँ पेलकर दुनिया को बताने वाले की "अरे यारों मुझे पहचानो” वाली सोच के राजकुमार,अलाना-फ़लाना, मंडल-कमण्डल के पदाधिकारी, बहुत तेज़ी से उभरते, युवा नेता, निडर-निष्पक्ष, संघर्षशील,कर्मठ जैसे शब्दों के पर्याय, जिनके 70 गुरु या भाईसाहब हों और जो हर तथाकथित बड़े अधिकारी को सोशल-मीडिया पर बड़ा भाईं,गुरू,पिता तुल्य या पिता से भी बढ़कर बताता हों,जो ज़रूरत के समय पड़ोसी को बाप बना लें,वक्त-बेवक्त धर्म का लिबास बदल लें,अपना ख़ुदा या भगवान बदल लें ऐसे दिग्भ्रमित लोग आजकल सोशल-मीडिया पर कुकुरमुत्ते की तरह फैल रहे है। ऐसे चापलूस लोगो से दूर रहकर चापलूसी के परोक्ष समर्थन से बचे।
मेरा विचार है की इंसान खुद के बलबूते पर ही अपनी लड़ाई लड सकता है इसीलिए हमे भगवान ने जो जीवन प्रदान किया है उसे अपने स्वाभाविक रूप से जीकर जिन्दादिल जीवन यापन करना चाहिए न कि चापलूसी मे दरबदर की ठोकरे खाकर बर्बाद ।
ये लेखनी मेरे मित्र अनिल पारीक जी ने आज व्हट्सअप पर भेजी थी। मैने सोचा सभी मित्रो से साझा करलू।
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