सूरए अल क़हफ़ मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी एक सौ दस (110) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
हर तरह की तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर
किताब (क़ुरान) नाजि़ल की और उसमें किसी तरह की कज़ी (ख़राबी) न रखी (1)
बल्कि हर तरह से सधा ताकि जो सख़्त अज़ाब ख़ुदा की बारगाह से काफिरों पर
नाजि़ल होने वाला है उससे लोगों को डराए और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम
किए हैं उनको इस बात की खुषख़बरी दे की उनके लिए बहुत अच्छा अज्र (व सवाब)
मौजूद है (2)
जिसमें वह हमेषा (बाइत्मेनान) तमाम रहेगें (3)
और जो लोग इसके क़ाएल हैं कि ख़ुदा औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ (4)
न तो उन्हीं को उसकी कुछ खबर है और न उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी
सख़्त बात है जो उनके मुँह से निकलती है ये लोग झूठ मूठ के सिवा (कुछ और)
बोलते ही नहीं (5)
और जो कुछ रुए ज़मीन पर है हमने उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हम लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें से कौन सबसे अच्छा चलन का है (7)
और (फिर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी इस पर है (सबको मिटा करके) चटियल मैदान बना देगें (8)
(ऐ रसूल) क्या तुम ये ख़्याल करते हो कि असहाब कहफ व रक़ीम (खोह) और (तख़्ती वाले) हमारी (क़ुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे (9)
कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर (10)
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