ये कुछ सवाल है मेरे जो क़यामत के रोज़ पूछुंगा तुम से क्यूंकि उस से पहले तुम्हारी और मेरी बात हो "iss laayak nahi ho tum"
मैं जानना चाहता हूं कि क्या रक़ीब के साथ चलते हुए शाम को यूंही बे ख़याली मे उसके साथ भी हाथ टकरा जाता है क्या तुम्हारा!
क्या अपनी छोटी उंगली से उसका भी हाथ थाम लिया करती हो जैसे मेरा थामा करती थी
क्या बता दी सारी बचपन की कहानियाँ तुमने... जैसे मुझे रात रात भर बैठ कर सुनाई थी, तुमने
क्या तुमने बताया उसको के 30 के आगे की हिन्दी की गिनती आती नहीं तुमको,
वो सारी तस्वीरें जो तुम्हारे पापा के साथ तुम्हारी बहन के साथ तुम्हारी थी जिसमें तुम बड़ी प्यारी लगीं..... क्या उसे भी दिखा दी तुमने,
ये कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पूछुंगा तुम से क्यूंकि उस से पहले मेरी और तुम्हारी बात हो "iss laayak nahi ho tum"
के मैं पूछना चाहता हूं क्या वो भी जब घर छोड़ने आता है तुमको तो सिड़ियों पर आंखें भीच कर क्या मेरी ही तरह उसके सामने भी माथा आगे कर देती हो तुम वैसे ही जैसा मेरे सामने किया करती थी,
क्या सर्द रातों में बंद कमरे में क्या वो भी मेरी ही तरह तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उँगलियो से हर्फ दर हर्फ खुदका नाम गोदता है और तुम भी क्या अक्षर बा अक्षर पहचानने की कोशिश करती हो जैसा मेरे साथ किया करती थीं,
ये कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पूछुंगा तुमसे क्यूँकि उस से पहले मेरी और तुम्हारी बात हो.... "iss laayak nahi ho tum"
शारिक अली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)