और था भी ऐसा ही और जु़लक़रनैन के पास वो कुछ भी था हमको उससे पूरी वाकफि़यत थी (91)
(ग़रज़) उसने फिर एक और राह एखि़्तयार की (92)
यहाँ तक कि जब चलते-चलते रोम में एक पहाड़ के (कंगुरों के) दीवारों के
बीचो बीच पहुँच गया तो उन दोनों दीवारों के इस तरफ एक क़ौम को (आबाद) पाया
तो बात चीत कुछ समझ ही नहीं सकती थी (93)
उन लोगों ने मुतरज्जिम के
ज़रिए से अजऱ् की ऐ ज़ुलकरनैन (इसी घाटी के उधर याजूज माजूज की क़ौम है
जो) मुल्क में फ़साद फैलाया करते हैं तो अगर आप की इजाज़त हो तो हम लोग इस
ग़जऱ् से आपसे पास चन्दा जमा करें कि आप हमारे और उनके दरम्यिान कोई दीवार
बना दें (94)
जुलकरनैन ने कहा कि मेरे परवरदिगार ने ख़र्च की जो कु़दरत मुझे दे रखी है
वह (तुम्हारे चन्दे से) कहीं बेहतर है (माल की ज़रूरत नहीं) तुम फक़त मुझे
क़ूवत से मदद दो तो मैं तुम्हारे और उनके दरम्यिान एक रोक बना दूँ (95)
(अच्छा तो) मुझे (कहीं से) लोहे की सिले ला दो (चुनान्चे वह लोग) लाए और
एक बड़ी दीवार बनाई यहाँ तक कि जब दोनो कंगूरो के दरमेयान (दीवार) को
बुलन्द करके उनको बराबर कर दिया तो उनको हुक्म दिया कि इसके गिर्द आग लगाकर
धौको यहां तक उसको (धौंकते-धौंकते) लाल अँगारा बना दिया (96)
तो कहा कि अब हमको ताँबा दो कि इसको पिघलाकर इस दीवार पर उँडेल दें
(ग़रज़) वह ऐसी ऊँची मज़बूत दीवार बनी कि न तो याजूज व माजूज उस पर चढ़ ही
सकते थे और न उसमें नक़ब लगा सकते थे (97)
जुलक़रनैन ने (दीवार को देखकर) कहा ये मेरे परवरदिगार की मेहरबानी है मगर
जब मेरे परवरदिगार का वायदा (क़यामत) आयेगा तो इसे ढहा कर हमवार कर देगा
और मेरे परवरदिगार का वायदा सच्चा है (98)
और हम उस दिन (उन्हें उनकी हालत पर) छोड़ देंगे कि एक दूसरे में (टकरा के
दरिया की) लहरों की तरह गुड़मुड़ हो जाएँ और सूर फूँका जाएगा तो हम सब को
इकट्ठा करेंगे (99)
और उसी दिन जहन्नुम को उन काफिरों के सामने खुल्लम खुल्ला पेश करेंगे (100)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
27 अप्रैल 2022
और था भी ऐसा ही और जु़लक़रनैन के पास वो कुछ भी था हमको उससे पूरी वाकफि़यत थी
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