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28 अप्रैल 2022

एक दूत जो कभी राष्ट्र का दूत , राष्ट्रदूत कहलाता था

 एक दूत जो कभी राष्ट्र का दूत , राष्ट्रदूत कहलाता था , पत्रकारिता की पुरखों की कमाई की इसकी शान हुआ करती थी , लेकिन अब पिछले तीन सालों से भी अधिक समय से , यह राष्ट्रदूत , राजस्थान में , अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री से हठाकर किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की सुपारी लेकर , सुपारी किलर जर्नलिज़्म , की गंदी नाली में कूदने से , ओरिजनल पत्रकारों में जहाँ , राष्ट्रदूत का नाम गर्व से अव्वल दर्जे पर हुआ करता था , अब यह नाम शर्मिंदगी के साथ लिया जाने लगा है, जी हाँ दोस्तों , राष्ट्रदूत की देश को आज़ाद कराने वाली पत्रकारिता में पुरखो का इतिहास रहा है , राष्ट्रदूत की पत्रकारिता , कोटा ,सहित राजस्थान , पुरे देश में , गर्व के साथ लिया जाता रहा है , निष्पक्ष पत्रकारिता , तेज़तर्रार लेखन , खोजपूर्ण , तार्किक  , तथ्यात्मक , खबरें , अंदर की बातें , यह सब इस राष्ट्रदूत की पहचान थी , किसी लोकल पेपर से भी बहुत कम छपने और बहुत कम बंटने के बावजूद भी इस राष्ट्रदूत का , विज्ञापन व्यवसाय , सर्वाधिक , करोडो करोड़ का रहा है, राष्ट्रदूत , चाहे बिकें नहीं ,चाहे खरीददार ना हो , फिर भी ,बुद्धिजीवियों का एक बढ़ा वर्ग , अधिकारीयों का , राजनीतिज्ञों का एक बढ़ा वर्ग इस राष्ट्रदूत को ,  पढ़ने के लिए तलाशता रहता देखा गया है, इस राष्ट्रदूत से , अंदरखाने की बातें , समझता रहा है ,,यक़ीनन राष्ट्रदूत की पत्रकारिता को न्यूज़ चेनल्स के इलेक्ट्रॉनिक मिडिया के चकाचक बाज़ार के बाद भी , पत्रकारिता क्षेत्र में , सम्मान के साथ मान्यता प्राप्त रही , है स्वीकारित रही है ,यही वजह रही , के सरकारी विज्ञापनों , कॉमर्शियल विज्ञापनों में , कम अख़बार छपने के बाद भी , बिना किसी जांच पड़ताल के , इन्हे ऊँची दरों पर , स्थानीय निकाय हों, सरकारी विभाग हों , प्राइवेट एजेंसीज़ हों , सभी तरफ के विज्ञापन मिलते रहे है ,, यूँ तो राजस्थान के गाँधी कहे जाने वाले , अराजकता फैलाने वालों से संघर्ष करने वाले , अशोका दी ग्रेट के रूप में ,,मशहूर  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली नहीं, और उन्हें , मुख्यमंत्री पद से बदलने की अफवाहें शुरू हो जाती है , आज बदल रहे हैं , कल बदल रह हैं , अब तो बदल ही जाएंगे , लेकिन हर बार ,  विकट परिस्थतियों और भारी विरोध के बावजूद भी , जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ ,मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना कार्यकाल पूरा किया है ,, दो बार का कार्यकाल इसी तरह से उहापोह में ,अफवाहों के बीच चलता रहा , लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग रहीं ,, अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री की शपथ लेते ही ,सारी अफवाहें खामोश थीं , सिर्फ एक अख़बार , जो कभी राष्ट्र का दूत , ओरिजनल पत्रकारिता का दूत कहलाता था , वोह अख़बार , प्रदेश कांग्रेस कमेटी में ,क्या हुआ ,पहले के प्रभारी अविनाश पांडे के खिलाफ खबरों का जाल बुना जाता , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए हर रोज़  अखबार का एक स्थाई कॉलम , कल हठ जाएंगे, बहुत जल्दी हठ जाएंगे , हाईकमान नाराज़ , आम जनता नाराज़ वगेरा वगेरा बेसिरपैर की खबरें , रोज़ मर्रा का ,, राष्ट्रदूत प्रकाशन का फैशन बन गया , ,राष्ट्रदूत के वर्कर अशोक गहलोत के सिस्टम में , उनके प्रशंसक , उनकी करयोजनाओं ,जन कल्याणकारी योजनाओं, उन्हें अस्थिर करने वालों से उनके संघर्ष को ज़िंदाबाद कहने वाले लोग है , ,लेकिन राष्ट्रदूत के स्थाई गहलोत विरोधी कॉलम से ,, अशोक गहलोत के तो रत्तीभर फिर फ़र्क़ नहीं पढ़ा , अशोक गहलोत की महानता है ,विशालता है ,के उन्होंने , अख़बार के सर्कुलेशन , विज्ञापन की दरों ,, कॉमर्शियल विज्ञापन , सजावटी विज्ञापनों के विधि नियमों की कभी जांच नहीं कराई , ,कभी विज्ञापन के रोस्टर को कम करने के बारे में सोचा भी नहीं , ,लेकिन इन सब के बावजूद भी , अशोक गहलोत के खिलाफ रोज़ रोज़ लिखकर, राष्ट्रदूत की पत्रकारिता की प्रतिष्ठा मिटटी में मिलने लगी और आज,राष्ट्रदूत की इन बेसिरपैर की , योजनाबद्ध , कालपनिक प्रकाशित खबरों से , ,राष्ट्रदुरत के मालिकों की प्रतिष्ठा , पत्रकारिता से अलग थलग होकर , अशोक गहलोत की प्रतिष्ठा , मान मर्यादा ,की व्यक्तिगत रंजिशवाली सुपारी किलर की हो गयी है ,, झूंठ लिखना , झूंठ फैलाना ,हाईकमान को भड़काना ,, रोज़ अशोक गहलोत के हटने की समयसीमा निर्धारित कर भविष्यवाणी करना , वगेरा वगेरा , टार्गेटिव खबर ,सुपारी किलर की तरह , शुरू होने से , पत्रकारिता का धर्म , पत्रकारिता की मर्यादायें , सब मटियामेट हो गयीं , अफ़सोस इस बात पर है के , राष्ट्रदूत के भारत की पत्रकारिता के  इतिहास में सम्मानित नाम  रहा है , उनके मालिकों का स्वभाव मालिकाना नहीं , उद्योपति वाला नहीं, पत्रकारिता वाला स्वभाव रहा है , उनके पुरखों की पत्रकारिता की विरासत को उन्होंने हर हाल में , ज़िंदा रखा है, लेकिन आज की , चिन्दी चोर पत्रकारिता को देखकर , अब तो अफ़सोस होने लगा है , प्रिंट मिडिया की पत्रकारिता की दुनिया में , यक़ीनन राष्ट्रदूत ही एक आखरी उम्मीद था , जो भी अब इन हरकतों से मटियामेट छवि वाला होने लगा है ,, में यह सब दुखी मन से , पत्रकारिता खासकर , ,एक मर्यादित आचरण वाले ,राष्ट्रदूत की पत्रकारिता को तार तार होते देखकर , यह टिप्पणी सिर्फ इसलिए लिख रहा हूँ , क्योंकि मेरी व्यक्तिगत राय में , राष्ट्रदूत यक़ीनन ,, राष्ट्र में ओरिजनल ,, खोजी , निष्पक्ष , निर्भीक , साहसिक पत्रकारिता का दूत बनकर , राष्ट्रदूत रहा है , राष्ट्रदूत की यह पुरखों की विरासत है , लेकिन अब पिछले तीन सालों से , एक तरफा रिपोर्टिंग , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ नियमित टार्गेटिव जर्नलिज़्म ने, सब कुछ मिट्टी में मिला दिया , अभी भी हम राष्ट्रदूत को ज़िंदाबाद कहना चाहत्ते है, रष्ट्रदूत को अभी भी हम ओरिजनल खोजी ,जर्नलिज़्म की एक उम्मीद मानकर  बैठे है , इसीलिए अगर राष्ट्रदूत के मालिक , उसमे काम करने वाले  लोग,उल्टा सुलटा लिखने वाले लोग , मेरे जैसे हमदर्द लोग , इस सच्चाई को जब पढ़ें ,, तो राष्ट्रदूत के मालिकों से जो खुद भी अंर्तमन से , हमेशा सिद्धांतवादी पत्रकारिता के समर्थक रहे है ,वोह फिर से , व्यक्तिगत वेमन्सयता वाली ,सुपारी किलर जर्नलिज़्म से खुद को आज़ाद करके,  निष्पक्ष हो  ,जाएँ , अशोक जी गहलोत रहें , ना रहे, , मुख्यमंत्री कोई भी बने ,पत्रकारों या अख़बार मालिकों को ज़िद लेकर , किसी से भी वैचारिक पार्टनरशिप के साथ अभियान मे शामिल नहीं होना चाहिए ,, अशोक गहलोत से राष्ट्रदूत के मालिकों विचार न भी मिलें , तो पत्रकारिता की इज़्ज़त रखने, , राष्ट्रदूत की पुरखों की विरासत , नैतिकता  ,निष्पक्षता की गुडविल को बरक़रार रखने के लिए ही सही , निजी हमले , नियमित रोज़ के हमले बंद होना चाहिये , ताकि फिर से , मेरी पत्रकारिता की पहली पसंद , राष्ट्रदूत , अपनी पुरानी इज़्ज़तदार छवि, ओरिजनल ज़िम्मेदार पत्रकारिता की छवि के रूप में उभर कर , ओरिजनल पत्रकारों के लिए आइकॉन बनकर रहे , चिन्दी चोर की तरह के जर्नलिज़्म से , उसकी छवि अलग थलग , विशेष बनी रहे, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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