10 रमज़ान शरीफ मां खदीजा की तारीखे विसाल है
*10 रमज़ान को रोज़ा इफ्तार के वक़्त पर उम्मुल मोमेनीन हज़रत खदीजा तूल कुबरा सलामुल्लाहे अलैहा की बारगाह में खिराजे अकीदत पेश करें ओर फातिहा का एहतमाम करें*
*उम्मुल मोमेनीन खदीजा* सलामुल्लाहे अलैहा बहुत शरीफ़, पाक दामन ओर तिजारत करने वाली ताजिर व मालदार खातुन थी मक्का व मक्का के बाहर आप तिजारत किया करती थी माल व दौलत की वजह से मक्का के बड़े बड़े ताजिर व मालदार सरदारे मक्का आपसे निकाह करने का इरादा रखते थे आपको बहुत से मालदार ओर मक्का के सरदारों ने निकाह के लिये पैगाम भी दिए लेकिन *हज़रत खदीजा ने सबके पैग़ामो को खारिज करते हुए तीसरे निकाह के लिये बिल्कुल ही मना फरमा दिया था* हज़रत खदीजा दो बार की बेवा खातून थी
लेकिन जब आपकी नजर *सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम* पर गई तो आप *सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम* के बारे में अपनी सहेली नफीसा से बात की ओर सहेली नफीसा के ज़रिए *हज़रत मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह* से निकाह करने का पैगाम दिया *आक़ा सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम* ने नफीसा से कहा कि मेरे सरपरस्त मेरे चाचा *अबु तालिब* से जाकर बात कीजिये और यह पैगाम उनको दीजिये नफीसा ने यह पैगाम अबु तालिब को दिया तो हज़रत अबु तालिब ने अपने भतीजे *मोहम्मद* से बात की ओर हज़रत खदीजा के *निकाही पैगाम* को खुशी खुशी कुबूल किया फिर बारात लेकर *नबी ऐ कायनात* हज़रत खदीजा के घर तशरीफ़ ले गए-सुबहानल्लाह
आक़ा की तरफ से निकाह का खुत्बा हज़रत अबु तालिब ने पढ़ा और कहा सभी खूबियां अल्लाह के लिये है फिर हुज़ूर की शान में चंद कलेमात कहे कि *मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह* हमारे खानदान का *सबसे अच्छा नोजवान हैं इसकी तारीफ में सभी मक्का वाले कसीदे पढ़ते हैं ओर सादेकुल अमीन कहते हैं* हाँ इसके पास मालो दौलत कम है पर यह दौलत तो आनी जानी है *में मेरे माल में से 500 दिरहम मेहरे निकाह में देता हूं*
यह अल्लाह की हिकमत थी के नबी ऐ पाक 25 साल के नोजवान थे और माँ खदीजा बेवा थी ओर उम्र 40 साल थी।
*हज़रत खदीजा* ने *मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह* को क्यों *पसन्द* किया इस पहलू पर भी गुफ्तगू होना ज़रूरी समझता हूं जबकि खदीजा ने मक्का के *सरदारों के पैग़ामो को रिजेक्ट* कर दिया था।
*हज़रत खदीजा* का एक खास गुलाम था जिनका नाम मइसरा है इस गुलाम को *आप सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम* के साथ मां खदीजा ने तिजारत के लिये मुल्के शाम भेजा था और गुलाम को नसीहत की थी कि ऐ मइसरा तुम्हे हर बार यह कहती थी कि माल व दौलत का ख्याल रखना लेकिन इस बार ऐ मेरे गुलाम तुझे मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह का ख्याल रखना है और इनकी कमियों को तलाशना है और मक्का वापस आओ तो मुझे बताना है अगर यह काम तुमने ठीक किया तो में तुम्हे आज़ाद कर दूंगी।
*रसूले रहमत* के साथ मइसरा गुलाम तिजारत करके जब वापस मक्का आये तो खदीजा ने सवाल किया कि बता ऐ मइसरा तूने क्या क्या *कमियां मोहम्मद* में देखी हैं तो गुलाम ने कहा मेरी मलिका मेरी आक़ा खदीजा *मोहम्मद की बात ही निराली है धूप में चलते हैं तो बादल साया करते देखा है पूरे सफर में मिट्टी उड़ती है तो वह मिट्टी इनके कपड़ो पर नही लगती , बदन में पसीना आता है तो बदन से खुशबू आती है यह सब मेने पूरे सफर में देखा है और में यह कह सकता हूँ कि मैने तो इन जैसा आज तक किसी को नही देखा है*- सुबहानल्लाह
*हज़रत खदीजा रदियल्लाहो अन्हा का विसाल 10 रमज़ानुल मुबारक को 65 साल की उम्र पाकर मक्कतुल मुकर्रमा में हुआ* खुद सरकारे पाक सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपने हाथों से मक्का शरीफ के मशहूर क़ब्रिस्तान जन्नतुल मोअल्ला में दफन किया।
तमाम उम्मुल मोमिनीन में हज़रत खदीजा सबसे अफ़ज़ल है अल्लाह ने आपको गारे हीरा में जब रसूलुल्लाह इबादत में रहे थे तो हज़रत खदीजा आपके लिये गारे हीरा में खाना लेकर जाती थी उस वक़्त अल्लाह ने जीब्रील को भेजा और रसूलुल्लाह से कहा कि खदीजा आपके लिये खाना लेकर आ रही है उसको कहना अल्लाह ने खदीजा को सलाम भेजा है हज़रत खदीजा ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम की बारगाह में खिदमत करते हुए 25 साल गुज़ारे जो किसी भी उम्मुल मोमिनीन को यह शर्फ़ हासिल न हो सका।
*तमाम मोअर्रेखीन का इस पर इज्मा है कि सबसे पहले रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर ईमान लाने वाली हज़रत खदीजा ही है*
कठिन ओर मुश्किल दौर में आप सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम की ज़ाते पाक को सुकून दिया और आपके साथ हर हाल में इस्तेक़ामत के साथ खड़ी रही।
*हज़रत खदीजा तूल कुबरा बहुत बड़ी ताजिर थी मालदार खातुन थी आपने अपना सारा माल रसूले रहमत सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम की बारगाह में पेश कर दिया और आप पर खर्च कर दिया*
हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम की *11 बीवियों* में हज़रत खदीजा सबसे अफ़ज़ल ओर मर्तबे वाली उम्मुल मोमेनीन है।
हदीसे पाक में आया है कि हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रिवायत है कि अहले जन्नत की औरतों में सबसे अफ़ज़ल *हज़रत खदीजा, हज़रत फातिमा , हज़रत मरयम व हज़रत आसिया है*
हज़रत खदीजा के हयात में आप सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने दूसरा निकाह नही फरमाया सभी 10 उम्मुल मोमेनीन हज़रत खदीजा के विसाल के बाद निकाह में आई।
आप सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम हज़रत खदीजा से बेइंतेहा मोहब्बत फरमाया करते थे।
उम्मुल मोमेनीन हज़रत आयशा से रिवायत है कि जब आक़ा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम बकरी ज़िब्हा करते तो कुछ गोश्त हज़रत खदीजा की याद में उनकी सहेलियों में भेजते थे।
हज़रत खदीजा के यह मुख्तसर हालाते ज़िन्दगी है इनकी ज़िन्दगी के बहुत से अहम पहलू हैं जिन्हें लिखने से में क़ासिर हूँ गारे हीरा का जिक्र है आखरी वक़्त में नबी ऐ पाक को वसीयत की है उसका ज़िक्र है अल्लाह ने खुद सलाम भेजा जन्नत में मोतियों के महल की बशारत दी ।
हज़रत खदीजा के मर्तबे को सिर्फ यूं समझें कि जिसकी बेटी फातिमा जन्नत की सरदार हो तो उस मां के मर्तबे का आलम क्या होगा।
*अल्लाह हम सबको मां खदीजा सलामुल्लाह अलैहा से सच्ची मोहब्बत अता करें* आमीन सुम्मा आमीन
*आपकी दुआओं का तलबगार*
अब्दुल रशीद क़ादरी
कोटा राजस्थान
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