में राजस्थान के कोटा ज़िले ,, स्थित बरकत उद्यान इबादत घर हूँ , यहां रूहानी बाबाओं के मज़ार भी है , में राजस्थान वक़्फ़ बोर्ड की सम्पत्ति कोटा वक़्फ़ रिकॉर्ड में वक़्फ़ कमेटी के खाते में दर्ज हूँ , वक़्फ़ कमेटी कोटा ,वक़्फ़ बोर्ड मेरी देख रेख के लिए ज़िम्मेदार है , लेकिन फिर भी ,, आसपास के इबादत गुज़ार , मिलजुल कर ,, मेरी मरम्मत , मेरे रंगरोगन , की ज़रूरतें पूरी करते रहे हैं ,,, मेरा दर्द में किसे बताऊं ,, मेरे यहाँ इबादतगुज़ार ,, हर रोज़ दुआओं के लिए आते है ,, नमाज़ें अदा करते है , इबादत करते है ,, लेकिन मुझे दर्द होता है , जब बरसती बारिश , ठिठुरती ठंड , चिलचिलाती धुप में , में इन सभी इबादत गुज़ारों को ,, छत भी मुहय्या नहीं करा सकता ,, कुछ लोगों ने कोशिश की थी ,, रूपये भी मेरी जर्जर हालत को सुधारने के लिए इकट्ठे किये ,,, लेकिन क़ानून के नाम पर , ग़ैरक़ानूनी प्रशासन का डंडा चला ,, और मुझे मरम्मत करने , छत को मज़बूत करने ,, इबादतगुज़ारों को छत मुहय्या कराने की मुहीम को ,रोक दिया गया ,, मेरे इस काम को रोकने पर ,, इकट्ठे रूपये , जमा हो गए ,, काम रुक गया ,, मेने इन्तिज़ार किया , चलों ज़ालिमों , नाइंसाफों की सरकार है , बदल जायेगी , मेरे अपने हमदर्द आ आजायेंगे , सिस्टम में ,, मेरे अपने लोगों बैठेंगे ,, फिर मेरा चेहरा खिल उठेगा , मेरा रंग रोगन ,, मेरी मरम्मत , इबादतगुज़ारों के लिए छत मिल जायेगी ,, लेकिन अफ़सोस मेरे हमदर्द हुकूमत है ,, एक साल नहीं दो साल नहीं ,, क़रीब दो साल से ज़्यादा वक़्त हो गया है ,, मेरे इस शहर में ,, मेरे नाम पर बनी कमेटी के लोग ,,खुदा की राह में मिल्कियत के ज़िम्मेदार ,वक़्फ़ कमेटी कोटा ,वक़्फ़ बोर्ड राजस्थान ,, मेरे अपने मंत्री ,, मेरे अपने लोग ,, सब चुप्पी साधे बैठे , कुछ लिख लेते है , कुछ बोल लेते है , लेकिन अधिकतम ज़िम्मेदारों की , जुबान मुझे मरम्मत का इन्साफ दिलाने के नाम पर खामोश है , उनकी ज़ुबान हलक़ में अटकी पढ़ी है ,, यह सब कब है ,, जब ,, मेरे इस शहर के , कोटा शहर क़ाज़ी , राजस्थान भर में अपनी हैसियत , अपनी पहचान रखते है ,, मेरे इस शहर में ,, पूर्व मंत्री दर्जा ,,मदरसा बोर्ड के चेयरमेन ,,हैं ,, ख्वाजा गरीब नवाज़ के अजमेर दरगाह के चेयरमन पूर्व हज कमेटी चेयरमेन हैं ,, मेरी हमदर्द पार्टी के ,, एक नहीं , दो नहीं ,,, तीन निर्वाचित , तीन सहवरित प्रदेश कमेटी के सक्रिय सदस्य है ,, अल्पसंख्यक विभाग के भाजपा के पूर्व अध्यक्ष , कांग्रेस के अध्यक्ष ,, संभागीय पूर्व अध्यक्ष , कई पदाधिकारी ,, ज़िम्मेदार , समाजसेवक , शिक्षाविद , वगेरा वगेरा वगेरा ,के साथ , मौलवी , मौलाना वगेरा सभी तो हैं , लेकिन आज भी ,, मेरे यहाँ इबादतगुज़ारो के लिए चिलचिलाती , धूप ,, मूसलाधार बरसात ,, आंधी ,, तूफ़ान ,, ठिठुरती ठंड में ,, हिफाज़त के साथ इबादत के लिए , मेरी अपनी ज़मीन ,, मेरे अपने रूपये ,, मेरे अपने लोग ,, लेकिन फिर भी , छत तक भी मुहय्या नहीं हो सकी है , मेरी इस समस्या ,, मेरी इस फ़ाइल को ,इधर से उधर , उधर से इधर ,, पहले आप , पहले आप के नाम पर ,, फुटबाल बनाकर रख दिया है ,,, मेरी फ़ाइल कलेक्ट्रेट में ,वक़्फ़ कमेटी कोटा कार्यालय , तो फिर वक़्फ़ बोर्ड कार्यालय में ,,धक्के भी खा रही हो तो मुझे पता नहीं ,,,, तअज्जुब और अफ़सोस इस बात पर है ,, के मेरे इस इबादत घर में , कई ज़िम्मेदार ,इबादत भी करते है , लेकिन न जाने क्यों वोह खामोश से रहते है ,,, ताज्जुब इस पर भी है , के अभी मेरे इस शहर में ,, मेरे विभाग के चेयरमेन ,,वक़्फ़ बोर्ड चेयरमेन आये , मेरे इस विभाग के ,, मंत्री महोदय आये ,, उन्होंने मीटिंगे लीं , अफसरों से बात की ,, सरकारी टूर बनाया ,, मुझ सहित मेरी जैसी न जाने कितनी मिल्कियतें देखने की खबरें बनायीं ,, लेकिन में तो ,, मेरी छत तो , मेरी जर्जरता तो जस की तस है ,, शायद किसी ने इन में से एक भी ज़िम्मेदार के आगे जुबां ही नहीं खोली हो , हलक़ में अटकी पढ़ी जुबां ,, अगर बोलने की कोशिश में भी हो तो हो सकता है , किसी की , जलती हुई आँखों को देखकर , उसकी जुबां फिर से हलक़ में अटक गयी हो ,ऐसा नहीं के मेरे यह हालात , प्रशासन , नेता , मेरे कॉम के धर्मगुरु , इंटलेक्चुअल कहलाने वाले लोगों के साथ ,सभी पार्टियों में सियासत करने वालों को पता ना हो , सभी को पता है , खूब पता है , शिद्द्त से पता है ,, ,मेरा अपना इतिहास भी है ,,, मेरा इस शहर पर अहसान भी है ,, 1961 के पहले जब कोटा के आसपास किसानों की फसल के लिए , नहर निकाली गयी ,तब मुझे रोंदा गया ,, कोटा से झालावाड़ ,भोपाल ,, वगेरा के लिए जब हायवे बना तो मुझे छील कर छोटा सा कर दिया गया ,, मेने कोटा को एक सड़क देने की वजह से , मेरा अपना हिस्सा ,मेरे अपने वक़्फ़ का हिस्सा सब में देकर सड़क बनवाई ,,,, मुझे इनाम मिला ,, इनाम में ,, मुझे खूबसूरत बनाया गया , फूल पौधे , फुवारे लगाए गए ,, और तात्कालिक कलेक्टर गोविन्द सिंह जी ने मेरा नाम , पूर्व मुख्यमंत्री बरकत अली के नाम पर ,बरकत उद्यान रख दिया ,, कोटा शहर क़ाज़ी ने ,, एक रस्म अदायगी के तहत , यहाँ लगे खूबूसरत , रंगीन फुआरों का वॉल्व चालु कर उद्घाटन किया ,, कोटा शहर की जनता ने मेरे ज़रिये ख़बसूरती का लुत्फ़ लिया ,, आने जाने के लिए झालावाड़ रोड को कुशादा किया ,, नहर भी आगे बढ़ी , सब कुछ हुआ ,, लेकिन फिर मेरे वुजुगर के नाम पर ,, दो बच्चे भी शहीद हुए ,, ,, में क्या करूँ , कैसे करूँ ,, मुझे इंसाफ कौन दिलाये ,, मेरे इबादत गुज़ारों के लिए में कैसे , किस तरह से , छत बनवाकर , मेरे अपने जर्जर हालात सुधारूं ,, मेरी अपनी ज़मीन , मेरे अपने लोगों का रुपया ,, ट्रेफिक में कोई दिक़्क़त नहीं , किसी को भी कोई न्यूसेंस वगेरा की परेशानी नहीं , फिर भी मेरे हमदर्दों के शासन में , मेरे कोटा शहर क़ाज़ी की सरपरस्ती में , पूर्व मदरसा बोर्ड चेयरमेन , मदरसा बोर्ड सदस्य के इस शहर में , तीन निर्वाचित ,, तीन सहवरित पी सी सी सदस्यों की मौजूदगी में ,, मेरे कई तरह के अलग अलग समाजों के अध्यक्ष , प्रदेश अध्यक्ष , हज कमेटी के पूर्व चेयरमेन ,, अजमेर ख्वाजा दरगाह के चेयरमेन , मेरे अपने इबादतघरों के चेयरमेन वक़्फ़ चेयरमेन , वक़्फ़ कमेटी चेयरमेन ,, वक़्फ़ मंत्री ,, मेरे इबादगुज़ारों के परचम को लेकर चलने वाले , प्रदेश अध्यक्ष पदाधिकारिओं , ज़िम्मेदारों के होते हुए ,, मेरे दूसरे संमाजों के हमदर्दों के होते हुए ,, मेरे साथ यह नाइंसाफी आखिर कब तक ,, क्यों , किसलिए होती रहेगी ,, मेरे अपनों से , मेरा यह सवाल है , किसने रोका है तुम्हे आवाज़ उठाने से , क्यों रुके हुए हो तुम , मुझे इंसाफ दिलाने से , में गलत नहीं , फिर भी क्यों मुझ पर यह ज़ुल्म है ,यह ज़्यादती है ,बस एक बात याद रख लो , इंसाफ से बढ़कर कोई इन्साफ नहीं ,, इबादतघरों की हिफाज़त , मरम्मत से बढ़कर ,, कोई बढ़ा काम नहीं ,, फिर मेरी मरम्मत ,, मेरी हिफाज़त के लिए तो , एक विभाग है ,वक़्फ़ है , कमेटी है , वक़्फ़ बोर्ड है , अल्पसंख्यक मंत्रालय है , पंद्रह सूत्रीय कार्यक्रम है ,, अल्पसंख्यक विभाग है , तो क्या यह सब दिखावा है , तो क्या आप लोग , क़ाज़ी , मौलवी , मौलाना ,, पी सी सी सदस्य ,, समाजों के अध्यक्ष , मेरी अपनी कमेटी के ज़िम्मेदार सब , दिखावा करने वाले हो , या फिर खुदा के अलावा तुम्हे किसी और को खुदा मान लेने से , खौफ पैदा हो गया है ,या फिर किसी लालच के इन्तिज़ार में हो ,,, मर्ज़ी तुम्हारी , बोलो तो बोलो , चुप रहो तो चुप रहो , लेकिन अल्लाह एक दिन मुझे जर्जर हालात से मरम्मत करवाने ,, मेरी छत को मज़बूत करवाने का रास्ता ज़रूर निकाल लेगा , फिर तुम सब क्रेडिट लेने ज़रूर चले आना ,, मेरे यहां फिर भी तुम्हारा सभी का स्वागत रहेगा ,,यूँ तो मुझ जैसे कई इबादतघर , मेरे अपने लोगों की खामोश गुलामी की वजह से , आज भी मरम्मत , और आबाद होने को तरस रहे है ,,, सूरजपोल का इबादतघर कई सालों तक यूँ ही ,,सियासत, नौकरशाही , ,मेरे अपने लोगों की खामोशी पर आंसू बहाता रहा , फिर मेरे कुछ हमदर्द , अनिल जैन के साथ ,जब दिनेश जैन ऐ डी एम से मिले , तो दिनेश जैन के सहयोग से ,,अनावश्यक बाधा जो एक चुटकुले ,,नौकरशाही की कोमा , फुलिस्टोप ,,सी थी हटाई गयी ,, और स्वर्गीय अब्दुल सलाम जर्रा उनके हमदर्द , अनिल जैन के सहयोग से ,, सूरजपोल इबादतघर को अपना पैसा अपनी ज़मीन , अपनी जगह ,, होने पर भी बरसो बाद , मरम्मत , जीर्णोद्धार कर इबादतघर बना पाए ,, घन्टाघर मक़बरा थाने के पास भी ऐसे ही इबादत घर की कहानी रही है , लेकिन कोशिश करने , ज़ुबान खोलने ,, हाथ जोड़कर खड़े रहने की जगह , आँख में आँख डालकर अपने हक़ की बात करने से ,, बहुत कुछ काम होते है , हर कोई मुझ से इबादत घर के जीर्णोद्धार के काम काज में सहयोग के लिए तय्यार मिलता है , लेकिन तुम कहो तो सही , तुम करो तो सही , हलक़ में अटकी हुई जुबान ,, बाहर निकालो तो सही ,, अख्तर खान अकेला कोटा
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