मकर संक्रांति पर पढिये, दान की महिमा
दान से मिली आंख से रोशन है मेरी दुनिया
दान में आंख न मिली होती तो अंधेरा होता जीवन
62
वर्षीय,आकाशवाणी निवासी श्री महेंद्र यादव जी को अचानक एक आँख से दिखाई
देना बंद हो गया,जिसके लिए उन्होंने कोटा के साथ-साथ जयपुर,दिल्ली और
जबलपुर में काफी चिकित्सकों को भी दिखा दिया था,परंतु कहीं से भी इसका इलाज
संभव नहीं हो पा रहा था, इसी बीच उन्हें किसी ने नीमच के गोमाबाई नेत्रालय
पर जाकर दिखाने की सलाह दी । वहाँ जाने पर पता चला कि उनकी दाईं आँख का
कॉर्निया पूरी तरह खराब हो चुका है,और यदि इस आँख का प्रत्यारोपण नहीं किया
गया तो,धीरे-धीरे आपकी दूसरी आँख पर जोर पड़ने के कारण,सही आँख से भी आपको
दिखाई देना बंद हो सकता है ।
महेंद्र
जी को जब तक यह ज्ञान नहीं था कि,आँख का प्रत्यारोपण सिर्फ तभी संभव है जब
कोई पुण्य आत्मा का देवलोक गमन हुआ हो और उनके परिजनों ने मृत परिजन का
नेत्रदान करवाया हो, चिकित्सकों से पूरी जानकारी मिलने के बाद वह पुनः कोटा
आ गये,और इंतजार करने लगे कि कब उनकी आँख में दान में मिले कॉर्निया का
प्रत्यारोपण हो । महेंद्र जी होमगार्ड में कंपनी कमांडेंट के पद से
सेवानिवृत्त हुए थे,हमेशा लोगों के काम आने की आदत से कभी घर में बैठे
नहीं,परंतु इस आँख के कॉर्निया के बिगड़ जाने के कारण से वह इतना डर गए थे
कि,उनको लगने लगा था कि अब मेरा शायद बाकी जीवन दृष्टिहीन होकर ही गुजरेगा
।
थोड़े समय बाद हमको
गोमाबाई नेत्रालय से फोन आया कि उनकी आँख के उपयुक्त कॉर्निया मिल चुका
है,इसलिए वह प्रत्यारोपण के लिए आ सकते हैं, पूरे एक साल परेशान होने के
बाद उनकी आँख का प्रत्यारोपण हुआ और उनको आंख का प्रत्यारोपण किये हुए,5
साल हो चुके हैं और वह बहुत अच्छे से अपना काम कर पा रहे हैं,बैंक में केश
इंस्टालेशन का काम कर रहे हैं और अपने परिवार के साथ खुशी खुशी अपना जीवन
व्यतीत कर रहे हैं ।
शाइन
इंडिया फाउंडेशन के सदस्य जब महेंद्र जी के घर पहुंचे तो उनकी पत्नी विमला
यादव ने नेत्रदानी परिवार को धन्यवाद देते हुए कहा कि,यदि नेत्रदान के
माध्यम से मेरे पति को आँख नहीं मिल रही होती तो पूरा जीवन अन्धकार में
बिताना होता, नेत्रदान के इस कार्यक्रम में इतना प्रभावित हूँ,कि शीघ्र ही
मैं अपने पति के साथ अपना देहदान व नेत्रदान का संकल्प पत्र भरूंगी ।
महेंद्र
जी के दोनों बेटे जितेंद्र व अमितेंद्र भी नेत्र दान की महिमा को अच्छे से
समझ चुके हैं,वह भी अपने माता पिता के साथ इस बात के लिए संकल्पित हैं कि,
नेत्रदान को परिवार में परंपरा बनाकर रखेंगे ,जब भी कभी ऐसी स्थिति बनती
है कि घर,पड़ौस व रिश्तेदारों में कहीं कोई शोक का समय आता है तो,उनके
नेत्रदान हो सके इसके लिए पूरा प्रयास किया जाएगा ।
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