*राष्ट्रीय अंगदान दिवस पर छात्र-छात्राओं के साथ कार्यशाला*
*अंग-अभाव के कारण होने वाली मौतों का विकल्प है,अंगदान*
*मृत्यु के करीब लोगों के लिये, अंगदान बन सकता है,जीवनदान*
आज
पूरे भारतवर्ष में *12 वां राष्ट्रीय नेत्रदान अंगदान दिवस* मनाया जा रहा
है,आज के दिन संपूर्ण भारत वर्ष में अंगदान के लिए लोगों को जागरूक करने के
उद्देश्य से कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, इसके साथ ही लोगों में
अंगदान के प्रति जो गलत भ्रांतियां बनी हुई हैं,उनके निवारण के लिए भी
रैली, नाटक, रेडियो टॉक शो व कई सारी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं ।
राष्ट्रीय
अंगदान दिवस की इस अवसर पर आज गुमानपुरा स्थित महात्मा गांधी राजकीय
विद्यालय (इंग्लिश मीडियम) में शाइन इंडिया फाउंडेशन की ओर से अंगदान
जागरूकता कार्यशाला सम्पन्न हुई । जिसमें छठी क्लास से 12वीं क्लास तक के
200 बच्चों के साथ में स्कूल के समस्त स्टाफ ने अंगदान के संबंध में सभी
जानकारी प्राप्त की । कार्यशाला का आयोजन प्रशासन द्धारा दिये गये,कोरोना
गाइडलाइंस का पूरा ध्यान रखते हुए किया गया था ।
अंगदान
के प्रति बच्चों को जानकारी देते हुए,संस्था सचिव डॉ संगीता गौड़ ने कहा
कि,इस जीवन में समय रहते नेत्रदान-अंगदान का संकल्प कर लेना,और उसके बारे
में अपने परिचितों को बता देना बेहद जरूरी कार्य है। जब हमारा जीवन मृत्यु
के करीब है,तब भी यदि हमारे अंग किसी के काम आकर,उसका जीवन बचा सकते
है,उनके परिवार में खुशियाँ ला सकते है,तो इससे अच्छा नेक कार्य कोई नहीं
हो सकता है ।
नेत्रदान के
प्रति अपने विचार प्रकट करते हुए विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री राहुल
शर्मा जी ने कहा कि, हम सभी को जीवन में कुछ तो ऐसे कार्य करके जाना
चाहिए,जिससे हमारे इस दुनिया से जाने के बाद भी, हमारा परिवार गौरवान्वित
महसूस करें । नेत्रदान अंगदान संकल्प स्वयं को प्रेरित करता है,औऱ हमको यह
अहसास दिलाता है कि, हमारे जीवन व्यर्थ ही नहीं हुआ है । पूरा जीवन इंसान
सिर्फ स्वार्थ के पीछे भागता रहता है, पर उसका अंत समय तो अन्य लोगों के
लिये प्रेरणादायी होना ही चाहिये ।
संस्था
शाइन इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक डॉ कुलवंत गौड़ ने बच्चों को खिलौनों का
उदाहरण देते हुए बताया कि, यदि बच्चों का प्रिय लगने वाले नए खिलौने का कोई
हिस्सा टूट जाता है,तो एल पल के लिये तो वह नया खिलौना बेकार ही हो जाता
है,परंतु कहीं से वह टूटा हिस्सा, किसी और पूरी तरह से बेकार हो गये खिलौने
से मिल जाता है, तो से वह नया खिलौना वापस पहले सा हो जाता है,उससे कुछ और
दिन खेला जा सकता है।
डॉ
गौड़ ने नैत्रदान के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि,नैत्रदान का
कार्य ,मरणोपरांत 2 वर्ष से 80 वर्ष तक की उम्र में संभव होने वाली एक ऐसी
प्रक्रिया हैं,जो सिर्फ 10 मिनट में पूरी हो जाती हैं, जिसमें न तो किसी
तरह का कोई रक्त बहता है,और न चेहरे पर कोई विकृति आती है। बच्चों ने पहली
बार जाना कि,अंगदान के माध्यम से कम से कम 9 लोगों का जीवन 2 आँखों, एक
लिवर, एक अग्नाशय, दो किड़नी, एक दिल ,दोनों फेफड़े से बचाया जा सकता हैं।
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