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24 अक्तूबर 2021

हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की

 

भाई पंकज श्रीवास्तव की वॉल से,
हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की,
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की!
क्या आप किसी ऐसे क्रांतिकारी को जानते हैं जिसके सामने उसके दो बेटों और एक पोते का सर थाल में सजा के अंग्रेजों ने पेश किया हो और उसने उफ़ भी न किया हो? उल्टा कहा हो कि उनके खानदान में 'औलादें अपने बाप के सामने यूँ ही सुर्खरू होकर आती रही हैं!'
अपने मुल्क में दो ग़ज़ ज़मीन भी न पा सकने वाले उन्हीं बहादुर शाह ज़फ़र का आज जन्मदिन है। 1857 में हुई आज़ादी की पहली लड़ाई में उन्हें ही भारत सम्राट घोषित करके रानी लक्ष्मीबाई से लेकर बेगम हज़रत महल तक ने कुर्बानियों की मिसाल पेश की थी। ज़फ़र ने ऐलान किया था कि फ़िरंगियों को भगाने के बाद वे बादशाह नहीं बनेंगे बल्कि भारत के तमाम नरेश एक 'काउंसिल' बना लें जो बग़ैर किसी भेदभाव के शासन करें। यह भारत का 'मैग्ना कार्टा' क्षण था। लोकतंत्र का बीज बो दिया गया था। 1857 की असफलता के बावजूद कंपनी राज का अंत एक बड़ी कामयाबी थी।
हिंदू-मुस्लिम एकता के ख़ूबसूरत ख़्याल पर नये हिंदुस्तान की बुनियाद का सपना देखने वाले आख़री मुग़ल को सौ-सौ सलाम!!

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