आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

15 मई 2021

कोटा के वरिष्ठ पत्रकार , शाहबुद्दीन , यानि एस फ़ारूक़ी , की चिकित्स्कीय हत्या हुई है , सिस्टम के लुटेरे ,, व्यस्थापकों ,ने एक ज़िंदा दिल शख्स को , हमसे छीन लिया , उनकी यह दर्दनाक , बेवक़्त चिकित्स्कों की लापरवाही से आयी मोत , बेकार नहीं जायेगी ,, ऐसे लोगों को ,लापरवाही की , एक अदालत , अदालत से भी बढ़ी अदालत , सज़ा ज़रूर देगी

 कोटा के वरिष्ठ पत्रकार , शाहबुद्दीन , यानि एस फ़ारूक़ी ,  की  चिकित्स्कीय हत्या हुई है , सिस्टम के लुटेरे ,,  व्यस्थापकों ,ने  एक ज़िंदा दिल शख्स को , हमसे छीन लिया ,  उनकी यह दर्दनाक , बेवक़्त चिकित्स्कों की लापरवाही से आयी मोत ,  बेकार नहीं जायेगी ,, ऐसे लोगों को ,लापरवाही की , एक अदालत , अदालत से भी बढ़ी अदालत , सज़ा ज़रूर देगी ,  क्योंकि लोगों की दुआए , एस फ़ारूक़ी के साथ रही है , और उनके यूँ अचानक चले जाने से , इस सिस्टम के लोगों के खिलाफ उनकी बद्दुआए भी शुरू हो गयी है  ,, कोटा की धरती पर , जो शख्स अपनी जान की बाज़ी लगाकर ,, अपने दोस्तों ,  अड़ोस , पड़ोस  की मदद के लिए ,,  हर वक़्त खड़े रहता था , उनकी ज़िंदगियाँ बचाने के  लिए अस्पतालों ,में डॉक्टर्स से झगड़ता था , उन्हें सुविधाएं , दवाये , दिलवाकर , उनकी जानें बचाता था , आज वही हर दिल ,  अज़ीज़ ,,ज़रूरत मंदों का मददगार ,, निर्भीक क़लमकार ,, एस फ़ारूक़ी , इस सड़े गले सिस्टम , लापरवाह प्रशासन ,, लुटेरे ,,सिर्फ बिल बनाने वाले निजी चिकित्सालय में बेबसी ,, लाचारी ,, की मोत मर गया , लेकिन यक़ीनन ,, ऐसे शख्स की मोत ,,  मोत नहीं ,  शहादत होती है , और किसी भी ऐसे शहीद की शहादत बेकार नहीं जाती , ऐसे लोगों का खून सर चढ़ कर बोलता ,, एस फ़ारूक़ी की  मोत के लापरवाह , ज़िम्मेदार चिकित्सक , सड़े ,  गले प्रशासनिक सिस्टम के अफसर , मुख्य चिकित्सक , निजी अस्पताल के ,, सिर्फ बिल देकर , लाश देने वाले , मालिक लोगों को अल्लाह बख्शेगा नहीं ,  ऐसे लोगों को उनके कर्मों की एक  दिन सज़ा  ज़रूर ज़रूर मिलेगी ,, एस फ़ारूक़ी के बच्चों की बेबसी , लाचारी ,, और एस फ़ारूक़ी को यूँ ही , बिना चिकित्सा मदद के , सिर्फ बिल पेड़ करवाकर , जन्नत में रवाना करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा ,,  फिल्म मेकर ,पत्रकार एस फ़ारूक़ी ,जब कोटा कोचिंग गुरुओं की पाठशाला नहीं हुआ करती थी ,तब से ही अपने समाचार पत्र ,,स्टूडेंट टाइम्स के नाम से ,छात्र ,छात्रों की समस्याओ को उठाते रहे है ,उन्होंने छात्र छात्राओं के डिप्रेशन से लेकर उनके उत्साहवर्धन ,प्रोत्साहन को लेकर कई आक्रामक सुझावात्मक लेख लिखे जिनकी वजह से कई साल पहले का तात्कालिक प्रशासन सतर्क होकर ,कई हादसों को बचा सका ,,दोस्तों में बात कर रहा हूँ   सभी  के हमदर्द ,एक नौजवान बनकर रहने वाले , , मेरे  स्वर्गीय  बढे भाई ,पत्रकार शाहबुद्दीन फ़ारूक़ी की,,जिन्हे सरकारी सिस्टम , सुधा हॉस्पिटल की अव्यवस्थाओं ने , बेमौत मार दिया ,, ,उनके जवान दिल में अभी भी हज़ारो ख्वाहिशे बाक़ी थीं ,, ,तो उनका हौसला आज भी ,देश ,समाज ,पत्रकारिता को निखारने के लिए संघर्ष कर रहा था ,,  ,भाई शाहबुद्दीन फ़ारूक़ी एक हौसला थे  ,वोह आखरी दम तक , मोत से लड़े , ज़िम्मेदारी से लड़े ,,,उनके हौसले को सलाम ,,, लेकिन आज इस कोरोना महामारी के दौर  के फेल्योर सिस्टम में ,, वोह खुद को , इन निजी चिकित्सालय के रोज़ रोज़ ,दवा , जांचों का बढ़ा , हज़ारों का बिल देने वालों से खुद को बचा नहीं सके , में बात करता हूँ उनकी  पत्रकारिता के हुनर की ,,, कम्पोज़ ,,ट्रेंडील छपाई की पत्रकारिता युग में ,फ़ारूक़ी भाई ,अपने अल्फ़ाज़ों से स्टूडेंट टाइम्स ,सहित कई पत्र ,,पत्रिकाओं ,मैग्ज़ीनों में अपनी पत्रकारिता का जोहर दिखाते रहे थे ,,  ,उस वक़्त की पत्रकारिता ,,ब्यूरोक्रेट्स ,,सियासत के मुखालिफ मुखर होकर उन्हें आयना दिखाती थी ,,उनकी निर्भीकता ,विश्वसनीयता के आगे सभी नतमस्तक हुआ करते थे ,दोस्तों पत्रकारिता का वोह दौर जब ब्यूरोक्रेट्स चाहे कितने ही ऊँचे ओहदे पर हो ,,मंत्री ,मुख्यमंत्री चाहे कितना ही महत्वपूर्ण पद हो ,पत्रकारों के सम्मान के साथ साथ ,,उनकी लेखनी से खौफ खाते थे ,बहुत कोशिश के बावजूद भी क़लम उनकी चाटुकार नहीं बन पाती थी ,पत्रकार उनके तलवे नहीं चाटा करर्ते थे ,उस वक़्त पत्रकार नेताओ ,ब्यूरोक्रेट्स के रक्षक ,प्रवक्ता नहीं हुआ करते थे ,,हाल यह था पत्रकारों की प्रतीक्षा ब्यूरोक्रेट्स ,,सियासी नेता किया करते थे ,और अदब के दायरे में उनके सवालों का जवाब ,उनका आत्मस्वाभिमान के साथ उनका सम्मान उनकी ज़िम्मेदारी होती थी ,,खेर वोह दौर खत्म हुआ ,पत्रकारिता का जो दौर है उससे सभी दुखी है ,लेकिन कुछ आज भी है जो पत्रकारिता के इस स्वाभिमान को ज़िन्दा किये हुए है ,ऐसे सभी पत्रकारों ,क़लमकारो को एस फ़ारूक़ी के पुत्र , बेटी , दामाद , दोस्तों ने लगातार झिंझोड़ा ,, स्थानीय  जनप्रतिनिधियों से , लेकर जयपुर , दिल्ली के नेताओं को टटोला , खुद पत्रकारिता के बैनर के नाम पर मदद चाही , लेकिन अब तो झूंठ था , फरेब था , वायदे थे ,, टालम टोल का रवय्या ,,,था , में बेबस , क़य्यूम भाई बेबस , डॉक्टर रामवतार बेबस , श्यामरोहिड़ा ,,बेटे से भी लाडले दामाद , आबिद खान , उनके दोस्त , अहबाब , सियासी रिश्ते सब बेबस ,,  आबशार क़ाज़ी बेबस , सभी कोशिशों के बावजूद भी , डॉक्टर , मुख्य चिकित्सा अधिकारी , प्रशासन , सुधा हॉस्पिटल का सिस्टम , जस का तस रहा , वही रोज़  लम्बे लम्बे बिल ,, दुलभ दवाओं की डिमांड ,, जांचे ,, रोते , बिलखते बेबस बच्चों की बिल इधर उधर से  क़र्ज़ लेकर , जमा कराने की मजबूरी , लेकिन आखिर इन सब के बावजूद भी , कुछ तो छुपाया गया ,, कुछ तो लापरवाही रही , जो एस फ़ारूक़ी को , सभी प्रयासों के बावजूद भी , डॉक्टर नहीं बचा पाए , हमारी ,दुआएं  उन्हें ज़िंदगियाँ नहीं दिलवा सकीं ,,विख्यात समाज सेवक ,,शिक्षाविद ,,पत्रकार भाई शाहबुद्दीन फारुकी जिन्हे ,,फिल्म मेकर एस फारुकी के नाम से जानते है ,,एक जुलाई को उनका जन्म दिन है ,,वैसे तो अब वह पचहत्तर बरस के थे ,,  ,,लेकिन माशा अल्लाह उनका जवांन दिल , उनका खिदमत का हौसला , उन्हें , मरते दम  तक भी ,, समाज के खिदमत मामलों से जोड़े हुए था  ,,वह लेखक भी थे ,  ,,पत्रकार भी थे , और शिक्षाविद के नाते उनका स्कूल भी रहा था ,,  ,,एस फ़ारूक़ी छात्र जीवन से ही राजनीति में रहे ,,यह कांग्रेस के संयुक्त सचिव रहकर संघर्षशील कार्यो में जुटे रहे ,,फिर छात्रों की समस्याएं जब इन्होने देखी ,,तो कोटा के छात्रों को एक नई दिशा ,,नया संदेश ,,सभी शैक्षणिक जानकारियां एक साथ देने के लिए एस फारुकी ने स्टूडेंट टाइम्स अखबार का प्रकाशन शुरू किया ,,हाड़ोती विश्व विद्यालय के छात्र आंदोलन के दौरान इस अखबार ने छात्रों को दिशा हींन होने से बचाया ,,हिंसक घटनाओं को छात्रों को प्रेरित कर रुकवाया ,,छात्रों के खिलाफ झूंठे मुकदमों से भी इस अखबार स्टूडेंट टाइम्स की निगरानी से छात्र बच सके ,,एस फारुकी पुराने वक़्त में अखबारों का सरताज कहे जाने वाले समाचार पत्र ,,ब्लिट्ज़ के कोटा से प्रमुख रिपोर्टर थे ,,दैनिक ट्रब्यून ,,नवज्योति सहित कई अखबारों में इन्होने पत्रकारिता के जोहर दिखाए ,,एस फारुकी को सच्ची घटनाएं लिखने का शोक रहा ,इसीलिए इन्होने फिर अपना रुख सच्ची कहानिया ,,मनोहर कहानिया की तरफ किया ,,एस फारुकी की कई खोजपूर्ण रिपोर्टे ,,आक्रामक तेवर में प्रकाशित हुई ,,यह पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाने के बाद फिल्म कलाकारों के सम्पर्क में आने के बाद ,,फिल्मी लाइन की तरफ गए ,,जहां कोटा की सबसे पहली टेली फिल्म ,,त्याग ही त्याग ,,का निर्माण हुआ ,,इस फिल्म के कथाकर खुद एस फारुकी थे ,,निर्देशक ,,,निर्माता भी एस फारुकी थे ,,एक छात्र छात्रा की प्यार भरी कहानी इस फिल्म में इन्होने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत की ,,इस फिल्म की पूरी शूटिंग इन्होने कोटा में ही की ,,इसमें कोटा के ही कलाकारों को स्थान देकर उनकी प्रतिभाओं को उजागर करने का प्रयास किया गया ,,एस फारुकी ने स्थानीय कलाकरो को मुंबई के फिल्मी कलाकरो से सम्पर्क स्थापित करवाकर ,,कोटा की प्रतिभाओं को फिल्मों में स्थान दिलवाने का रास्ता साफ किया ,,आज भी इनसे जुड़े कई कलाकार मुंबई की बढ़ी फिल्मों में काम कर रहे है ,,,स्वभाव से धीर गम्भीर ,,लेकिन बच्चों में बच्चे ,,छोटों में छोटे ,,बुज़ुर्गों में बुज़ुर्ग का स्वभाव रखने वाले इस मृदुल स्वभावी शख्सियत के अंदर एक पत्रकार ,,एक कलाकार ,,एक फिल्म निर्माता ,,मरते दम तक हिलोरे लेता रहा ,,  ,,एस फारुकी प्रेस क्लब कोटा के सदस्य के रूप में मुस्कुराकर अपने सभी छोटे बढ़े साथियो में अपने अनुभव भी बांटते थे ,   ,,जबकि एस फारुकी ,,आज की पत्रकारिता में गरीबो ,,थड़ी होल्ड्र्स सहित रोज़ कमाने वालो की खबरें जब नहीं देखते  तो वह निराश हो जाते थे ,,,एस फारुकी यारों के यार थे , इसीलिए आज भी  मरते दम  तक , इन्होने अपने पुराने साथियो को धरोहर बनाकर सजो कर रखा था  ,,में शुक्रगुज़ार हूं क़र्ज़दार हूँ ,  एस फारुकी का ,,जब डिजिटल आधुनिक फिल्म शूटिंग तकनीक नहीं थी ,,कैमरे से सीधे शूटिंग हुआ करती थी ,,तब एस फारुकी ने अपने खुद के निर्देशन में मेरी शादी के खुशनुमा पलो को ,,एक फिल्म के रूप में क़ैद किया था ,,मेरी शादी की इस पूरी फिल्म को एस फारुकी ने निर्देशित सम्पादित कर ऐसे खूबसूरत गीतों से भर दिया ,,ऐसे खूबसूरत लम्हों ,,ऐसे सभी रस्मो रिवाजो को इसमें क़ैद किया ,,और शायद पुरानी तकनीक की मेरी शादी की पहली फिल्म थी ,, जिसे इन्होने एक फिल्म की तरह खूबसूरत अंदाज़ में पेश किया ,,यह फिल्म आज भी यादगार है , अब तो उनकी बनाई हुई  फिल्म , उनकी यादों का हिस्सा बन कर रह गयी हैए ,,इस फिल्म को देखकर कई शादी की शूटिंग कर केसिट  बनाने वाले वीडियोग्राफरों ने,,  एस फारुकी को अपना गुरु बनाकर ,,शादी की फिल्मों का निर्देशन ,,सम्पादन ,,गीत का चयन और फिल्मांकन के गुर सीखे ,,,एस फारुकी इस  दौरान कई बार अस्वस्थ हुए , झटके सही ,  ,,लेकिन फिर, हर बार अपने हौसलों की उड़ान के साथ ,, एस फ़ारूक़ी ,, सभी की दुआओ से  तेज़ धार धार कलम लेकर ,,नए जज़्बात ,,नए अरमानो के साथ नई पत्रकारिता की तकनीक में अपने जोहर दिखाने को आतुर रहे ,  ,,आज फ़ारूक़ी  हमारी अपनी कमज़ोरी , हमारी अपनी मदद में कमी , कोशिशों की कमी , सड़े गले सिस्टम में लूट खसोट  की खुली छूट , नौकरशाही , की मनमानी की वजह से , हमे छोड़ कर चले गए , अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में ,, आला मुक़ाम अता फरमाए , उनके दो बेटों , ,बेटियों की तरह बहुएं , , बेटी , दामाद , रिश्तेदार , दोस्त , उनके पड़ोसियों को अल्लाह सब्र दे ,, ,,आमीन ,,सुम्मा आमीन ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...