और अगर तुम्हारी बीवियों में से कोई औरत तुम्हारे हाथ से निकल कर काफिरों
के पास चली जाए और (ख़र्च न मिले) और तुम (उन काफि़रों से लड़ो और लूटो तो
(माले ग़नीमत से) जिनकी औरतें चली गयीं हैं उनको इतना दे दो जितना उनका
ख़र्च हुआ है) और जिस ख़ुदा पर तुम लोग ईमान लाए हो उससे डरते रहो (11)
(ऐ रसूल) जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें तुमसे इस बात पर बैयत करने आएँ
कि वह न किसी को ख़ुदा का शरीक बनाएँगी और न चोरी करेंगी और न जे़ना करेंगी
और न अपनी औलाद को मार डालेंगी और न अपने हाथ पाँव के सामने कोई बोहतान
(लड़के का शौहर पर) गढ़ के लाएँगी, और न किसी नेक काम में तुम्हारी
नाफ़रमानी करेंगी तो तुम उनसे बैयत ले लो और ख़ुदा से उनके मग़फि़रत की दुआ
माँगो बेशक बड़ा ख़ुदा बख़्षने वाला मेहरबान है (12)
ऐ ईमानदारों जिन लोगों पर ख़ुदा ने अपना ग़ज़ब ढाया उनसे दोस्ती न करो
(क्योंकि) जिस तरह काफि़रों को मुर्दों (के दोबारा जि़न्दा होने) की उम्मीद
नहीं उसी तरह आख़ेरत से भी ये लोग न उम्मीद हैं (13)
सूरए अल मुम्तहिनह ख़त्म
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