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13 अप्रैल 2021

कोटा सहित देश भर में छद्म मानवाधिकार कार्यकर्ता

कोटा सहित देश भर में छद्म मानवाधिकार कार्यकर्ता ,, छद्म मानवाधिकार संस्थाए ,, मानवाधिकार आयोग से मिलते जुलते नामों से बनी संस्थाए , उनके लेटरपेड , उनके विज़िटिंग कार्ड ,, संस्था के विधि विधान के विपरीत पदाधिकारियों की नियुक्तियां एक तरफ , मानवाधिकार संरक्षण कार्यक्रम पर कुठाराघात है तो दूसरी तरफ , मानवाधिकार क़ानून के तहत 27 साल बाद भी क़ानूनी प्रावधान के तहत जिला मानवाधिकार न्यायालयों का गठन कर उनका संचालन शुरू नहीं हो पाना , मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं की सतर्कता , मानवाधिकार के प्रति सजगता को , प्रश्नगत करता है ,,,,
देश में मानवाधिकार के मूल्यों की रोज़ हत्याएं होती ,है , राष्ट्रिय , राज्य स्तर पर मानवाधिकार आयोग होने , हर गली कूंचे ,में ,, कथित ,, मानवाधिकार संरक्षण संस्थाए होने के बावजूद भी , मानवाधिकार संरक्षण संघर्ष का नतीजा ज़ीरो है ,, बात साफ़ है , मानवाधिकार संरक्षण के नाम पर छद्म कार्यवाहियां , छद्म संस्थाए ,, बढे बढे बैनर , बोर्ड , कार ,बाइक के पीछे , मानवाधिकार संस्थान के नाम , पद लिखवाकर इतराते तो है , लेकिन मानवाधिकार संरक्षण क्षेत्र में काम धेला मात्र भी नहीं करते है , यही वजह है , के मानवाधिकार संरक्षण क्षेत्र में , मानवाधिकार हनन के खिलाफ , संघर्ष का दौर थम सा गया है ,और अब कुछ एक अपवादों को छोड़कर , यह सब सिर्फ रस्म अदायगी की बात हो गयी है ,,, मानवाधिकार आयोग होना अलग है , मानवाधिकार आयोग का पदाधिकारी ,चेयरमेन , ,सदस्य होना अलग बात है ,, मानवाधिकार संरक्षण क्षेत्र में , प्रचार प्रसार , का काम करने वाली संस्थाओं की कार्यवाहीअलग बात है , इस क्षेत्र में सक्रिय रहकर ,, काम करना , सभी अलग अलग बात है , लेकिन दूसरी तरफ , हर गली , मोहल्ले में , कुकुरमुत्ते की तरह , मानवाधिकार संरक्षण संस्थानों की खरपतवार का उग आना ,, मानवाधिकार आयोग से मिलते जुलते नामों की संस्था बनाना ,, मानवाधिकार आयोग का प्रतीक चिन्ह का इस्तेमाल करना , बढे बढे कार्ड छपवाना , विज़िटिंग कार्ड छपवाना , कारों के पीछे , बढ़ बढे अक्षरों में संस्था और पद लिखवाना , एक आपराधिक कार्यवाही हो गयी है , पिछले दिनों मानवाधिकार आयोग ने इस तरह की शिकायतों के बाद कुछ संस्थाओं के खिलाफ कार्यवाही भी करवाई थी , पुलिस ने उनके खिलाफ कार्यवाही भी की थी , खुद मानवाधिकार आयोग ने , परिपत्र जारी कर , मिलते जुलते नामों से संस्थाओं का पंजीयन ,संस्थाओं के नाम का इस्तेमाल , पदाधिकारियों द्वारा विज़िटिंग कार्ड ,,या स्टेशनरी पर , मानवाधिकार का लोगो , यानी प्रतीक चिन्ह लगाने पर पाबंदी भी लगा रखी है , लेकिन कुछ लोगों को कार्ड दिखाकर ,रुआब जमाने की संस्कृति में पलने बढ़ने वाले कुछ लोग , इस अपराध को लगातार कर रहे है , संस्थान के विधि विधान के विपरीत , मन चाहे लोगों को पदाधिकारी बना रहे है , वोह अपने विज़िटिंग कार्ड , पुलिस कर्मियों , कुछ आम लोगों सहित , सरकारी दफ्तरों में रुआब दिखाकर आज भी इतरा रहे है ,, इन संस्थाओं के पदाधिकारियों में ऐसे भी अधिकतम लोग है ,जिन्हे आज भी ,मानवाधिकार , मानवाधिकार संरक्षण , शिकायत करने के तोर तरीकों के बारे में क ख ग जैसी बाराह खड़ी का ज्ञान भी नहीं है ,,, अफ़सोस तो इस बात पर है के खुद मानवाधिकार आयोग की सक्रियता कम हो गयी है , जिला स्तर पर उनकी सुनवाई शुरू हुई नहीं , राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग का गठन 1993 में हुआ 1993 में ही मानवाधिकार संरक्षण क़ानून बनाया गया ,, अफ़सोस इस बात पर है के करोड़ो करोड़ नहीं , , अरबों अरब रूपये हर साल मानवाधिकार संरक्षण के नाम पर राष्ट्रीय राज्य स्तर पर खर्च होने पर भी ,, अब तक , 1993 में बने क़ानून के कई प्रावधान पुरे 27 साल गुज़र जाने के बाद भी लागू नहीं हो सके है ,यह तो तब है जब , राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जज होते है , राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष , राज्य की हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज होते है ,, मानवाधिकार क़ानून 28 साल पुरे होने पर भी ,, मानव अधिकार न्यायालय अधिनियम की धारा के तहत 30. मानव अधिकार न्यायालय-मानव अधिकारों के अतिक्रमण से उद्भूत होने वाले अपराधों का शीघ्र विचारण करने के लिए उपबंध करने के प्रयोजन के लिए, राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से अधिसूचना द्वारा, उक्त अपराधों का विचारण करने के लिए, प्रत्येक जिले के किसी सेशन न्यायालय को मानव अधिकार न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी :
परन्तु इस धारा की कोई बात तब लागू नहीं होगी, जब तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसे अपराधों के लिए-
(क) कोई सेशन न्यायालय पहले से ही विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट है; या
(ख) कोई विशेष न्यायालय पहले से ही गठित है ।
31. विशेष लोक अभियोजक-राज्य सरकार, प्रत्येक मानव अधिकार न्यायालय के लिए, अधिसूचना द्वारा, एक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को, जिसने कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि-व्यवसाय किया हो, उस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए, विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी,,जैसे विधिक प्रावधान है , लेकिन अफ़सोस अभी तक , कोटा सहित , भारत के किसी भी ज़िले में , इस तरह के न्यायलय स्थापित नहीं हो सके है ,, राजस्थान में अलबत्ता ,वर्ष 2012 में एक परिपत्र निकाल कर ऐसे निर्देश जारी हुए थे , लेकिन वोह निर्देश सरकारी पत्रावलियों में गुम है , अभी तक , कोटा सहित कहीं भी इस क़ानून के तहत न्यायालयों की स्थापना नहीं हुई है ,, अफ़सोस इस बात का है के इस मामले में किसी भी मानवाधिकार संरक्षण संस्थान ने आवाज़ नहीं उठाई है , खुद मानवाधिकार आयोग ने अभियान छेड़कर इन विशेष न्यायालयो का गठन नहीं करवाया है , ऐसे में , सिर्फ नोटिस जारी करना , सिफारिश करना ,, लंबित जांचों को महीनों लटका कर रखना ,, मानवाधिकार संरक्षण हितों के संर्वधन में ठीक नहीं है ,, मुझे गर्व है , हमारी ह्यूमन रिलीफ सोसायटी की तरफ से , राष्ट्रिय मानवाधिकर आयोग के गठन के बाद सबसे पहली शिकायत ,, हमारी दर्ज हुई , उसका निस्तारण खुद आयोग की टीम ने कोटा पहुँच कर सूक्ष्म जांच के बाद कठोर निर्देशों के साथ किया , राजस्थान मानवाधिकार आयोग के गठन के बाद भी सबसे पहली शिकायत ,, हमारी ह्यूमन रिलीफ सोसायटी की तरफ से हमारी ही दर्ज हुई ,और वोह भी ऐतिहासिक फैसले के साथ नज़ीर बनी , लेकिन अब वोह दिन कहाँ ,, अब वोह जांच प्रक्रिया कहाँ ,, इधर छद्म कार्यकर्ताओं ने , छद्म लेटरपेड ,, छद्म कार्डधारकों ने मानवाधिकार के मूल कर्तव्यों को मिटटी में मिलाना शुरू कर दिया है , इसे रोकने की ज़रूरत है और सरकार तो मानवाधिकार अदालतें खोलने में नाकामयाब रहेगी फिसड्डी , रहेगी लेकिन खुद , मानवाधिकार आयोग के सदस्य , चेयरमेन को इस मामले में गंभीर क़दम उठाना चाहिए ,और हो सके तो सरकार के खिलाफ खुद आयोग को भी , मानवाधिकार न्यायालय क़ानूनी प्रावधान के बाद भी 28 साल गुज़रने पर भी नहीं खोलने पर , धरने ,, प्रदर्शन ,, सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर करने जैसे साहसिक क़दम उठाना चाहिए ,, , वर्ना रस्म अदायगी मात्र पर करोड़ों करोड़ , अरबों अरब रूपये खर्च करने से क्या फायदा ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

 

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