हाँ,
ऐसे ही होते हैं दरख़्त !
शर्त
के साथ
नहीं जीते
दरख़्त...
इसलिए
कट जाते हैं ।
हद में
सिकुड़े रहते हैं,
बोनसाई..
इसलिए
आसरा
पा जाते हैं ।
शाही पांवों में
लिपटी अमरबेल
भी दायरा
तय करना चाहती है
दरख़्त का ।
लेकिन,
शर्त से इतर
खड़े
दरख्त
कट जाते हैं ...
उसूलों पर
चलना
खुद का
कद तय करना
कट जाना
दरख्तों की
पसन्द है
मजबूरी नहीं ।
मजबूरी
बोनसाई
या
अमरबेल
की होती है,
जूझ कर
अपना
वजूद बनाने वाले
पाताल से
पानी खींच
पनपने वाले
दरख्तों की नहीं ।
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