किताबें खुली छोड़ आयी
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हवाओं ने पढ़कर है खुशबू लुटाई
मैं छत पर किताबे खुली छोड़ आई
कभी दुश्मनों में थी शमशीर बनकर
कभी मैं रही आंख का नीर बनकर
ना छूना मुझे दूर से देख लो तुम
रही हूं तेरे घर की तस्वीर बनकर
गमों से गमों की , हुई है सगाई
मैं छत पर किताबे खुली छोड़ आई
कोई दूर बंसी बजाता नहीं है
मिलन के कोई गीत गाता नहीं है
चमन में ये कैसी हवा चल पड़ी है
कोई फूल खुशबू लुटाता नहीं है
कि चाहा मिलन था , मिली है जुदाई
मैं छत पर किताबे खुली छोड़ आई
तू खुशबू तो थोड़ी गुलाबों में रख दे
ये घाटा कभी तो हिसाबो में रख दे
रखा आंख में तुमने सबको बसाकर
'अदा' हमको दिल की किताबों में रख दे
मैं तेरी हूं तेरी , करो ना पराई
मैं छत पर किताबें खुली छोड़ आई
(पूर्णिमा जायसवाल
अदा)
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