महिला दिवस के बाद ये कविता उन
पुरुषों के लिए....
सलाम तो बनता है
उन पुरुषों के लिए भी...
जो स्त्री को सम्मान के
साथ साथ उचित स्थान
दिलाने के लिए
कंधे से कंधा मिलाकर
खड़े होते हैं उनके साथ
हर कठिन मोड़ पे.....
सलाम तो बनता है
उन पुरुषों के लिए भी....
जो पिता के रूप में
घर का मजबूत स्तम्भ बन ,
खुद झेल जाते हैं
हर आँधी तूफां को
और सुरक्षित रखते हैं
अपने आशियां को
सलाम तो बनता है
उन पुरुषों के लिए भी....
जो भाई बन बचपन में
बहन की चुटिया खींच
खूब लड़ता था ,
पर अभी भी लड़ता है
उसी बहन से अगर वो
अपने ग़म उसे न बता
दिल में ही छुपा ले तो
सलाम तो बनता है
उन पुरुषों के लिए भी....
जो पति बन कद्र करते हैं
पत्नी की भावनाओं की
और ढलना जानते हैं
उस पत्नी के लिए भी,
जो ढल जाती है उनके
पूरे परिवार के लिए
उन्हें अपना बना के
हर हालात में
"मैं हूँ न साथ तेरे" !! कहने वाले
ऐसे हर पुरुष को सलाम ....
जो छुपा लेते हैं
अपनी नम आँखें
क्योंकि कितनों का
हौसला हैं वो 

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